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Explainer: 10 ग्राफिक्स में समझें, हमारी-आपकी और अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर क्या बताती है RBI रिपोर्ट!

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) सामने आई। साल में दो बार सामने आने वाली इस रिपोर्ट में आरबीआई देश की वित्तीय व्यवस्था की सेहत और स्थायित्व का मूल्यांकन करते हुए फाइनेंशियल सिस्टम के समक्ष आने वाली संभावित जोखिमों का मूल्यांकन करता है। जून महीने की रिपोर्ट बताती है कि अनिश्चित और वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्थिति में होने वाला उतार-चढ़ाव वैश्विक फाइनेंशियल सिस्टम के लिए चुनौती बना हुआ है और इन सबके बीच मजबूत मैक्रो-इकोनॉमिक  फंडामेंटल्स और फाइनेंशियल सिस्टम की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था और फाइनेंशियल सिस्टम मजबूत बना हुआ है। 

आरबीआई के मई महीने के सिस्टेमिक रिस्क सर्वे (SRS) के मुताबिक, सभी व्यापक जोखिम समूह ‘मध्यम जोखिम’ वाले श्रेणी में बने हुए हैं। इसके मुताबिक, पिछले सर्वे के मुकाबले जहां इस बार वैश्विक और संस्थागत जोखिम में वृद्धि हुई है, वहीं मैक्रोइकोनॉमिक और फाइनेंशियल मार्केट के जोखिम में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। 

‘उच्च जोखिम’ वाली श्रेणी में  वैश्विक ग्रोथ और भू-राजनीतिक संघर्ष शामिल है। इसी श्रेणी में अन्य जोखिमों में शेयरों की कीमतों में होने वाला उतार-चढ़ाव, जलवायु संबंधी जोखिम और साइबर जोखिम शामिल हैं। सर्वे के समग्र नतीजों को देखें तो भू-राजनीतिक संघर्ष, पूंजी की निकासी और जवाबी टैरिफ/ट्रेड में सुस्ती निकट अवधि में वित्तीय स्थिरता के लिए चुनौती होगी।

भारतीय बैंकिंग सेक्टर के मामले में देखें तो सर्वे में शामिल करीब 80 फीसदी ने माना कि भारतीय बैंकों की संभावनाओं में या तो सुधार हुआ है या इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है, जो बैंकिंग सेक्टर की मजबूती को दर्शाता है।  

बताते चलें कि ट्रेड तनाव और नीतिगत अनिश्चितता के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अप्रैल 2025 की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक को संशोधित करते हुए 2025 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अनुमान को पूर्व के 3.0 फीसदी से घटाकर 2.8 फीसदी कर दिया।

साथ ही विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एई) और उभरते बाजार व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) की वृद्धि दर में भी आने की गिरावट का अनुमान है। आईएमएफ के अलावा अन्य एजेंसियों मसलन द ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) ने जून के अपने इकोनॉमिक आउटलुक में वैश्विक अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट के अनुमान में 20 आधार अंकों की कटौती की है। वहीं विश्व बैंक ने भी जून 2025 के ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉसपेक्ट्स (जीएफपी) ने वैश्विक वृद्धि दर के पूर्व के 3.3 फीसदी के मुकाबले 2.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया है।

बढ़ा सार्वजनिक कर्ज

राजकोषीय मोर्चे पर भारत का सार्वजनिक कर्ज स्तर अन्य उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के मुकाबले अधिक है। हालांकि, बेहतर राजकोषीय प्रबंधन की वजह से पिछले कई वर्षों में भारत की राजकोषीय स्थिति और उसकी विश्वसनीयता बेहतर हुई है। साथ ही खर्च की गुणवत्ता बेहतर हुई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, “राजकोषीय मोर्चे पर, भारत का सार्वजनिक कर्ज स्तर, प्राथमिक घाटा और सरकारी राजस्व में ब्याज भुगतान का हिस्सा, अन्य समकक्ष उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर बना हुआ है।” रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में भारत का का कर्ज-जीडीपी अनुपात 81.3 फीसदी रहा।  

हालांकि, बेहतर राजकोषीय स्थिति और खर्च की बेहतर गुणवत्ता के दम पर इसका सामना किया जा सकता है। 

सामान्य और सरल भाषा में समझें तो इस शब्द का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में किसी देश के कुल कर्ज और उसकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का अनुपात है, जिसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। इस अनुपात का इस्तेमाल किसी देश या अर्थव्यवस्था की कर्ज भुगतान की क्षमता का आकलन करने में किया जाता है।

2024 में दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्था संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान और भारत थी और जीडीपी-ऋण अनुपात के आंकड़ों को तुलनात्मक तौर पर देखा जाए तो भारत दूसरा न्यूनतम कर्ज-जीडीपी अनुपात वाली अर्थव्यवस्था है। बताते चलें कि पीपीपी यानी परचेजिंग पावर पैरिटी के आधार पर भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है।

बजट 2025-26 में भारत सरकार की कुल कर्ज स्थिति का विवरण मौजूद है। इन आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 के 181,74,284 करोड़ रुपये के (संशोधित  अनुमान) के मुकाबले 2025-26 के अंत तक 196,78,773 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।

कर्ज-GDP अनुपात में भारत और अन्य शीर्ष अर्थव्यवस्था की तुलनात्मक स्थिति को समझने के लिए देखें: एक्सप्लेनर वीडियो

मजबूत कॉरपोरेट!

ट्रेड पॉलिसी को लेकर जारी अनिश्चितताओं के बीच भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर की स्थिति मजबूत बनी हुई है। बिक्री वृद्धि में मामूली वृद्धि के बावजूद सूचबीद्ध गैर-वित्तीय कॉरपोरेट्स (एनएफसी) और उनका परिचालन मुनाफा मजबूत बना हुआ है।

वैश्विक स्तर के मुकाबले भारत के कॉरपोरेट के कर्ज-जीडीपी अनुपात को देखें तो रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय कॉरपोरेट का कर्ज-जीडीपी अनुपा अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एई) और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के मुकाबले कम है।

 रिपोर्ट बताती है कि ट्रेड पॉलिसी की अनिश्चितता कंपनियों के आय अनुमान को प्रभावित कर सकती हैं। ऊच्च टैरिफ आने वाले दिनों में कॉरपोरेट के मार्जिन को प्रभावित कर सकता है।

बढ़ता घरेलू कर्ज

भारतीयों के घरेलू कर्ज में लगातार इजाफा हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेने की प्रवृत्ति में तेजी आई है। हालांकि, 2024 के दिसंबर अंत तक जीडीपी के मुकाबले (मौजूदा बाजार कीमत पर) घरेलू कर्ज का प्रतिशत 41.9 फीसद रहा है, जो अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले मामूली रूप से कम है। 

घरेलू कर्ज के मामले में व्यापक ट्रेंड्स को देखें तो मार्च 2025 तक गैर आवासीय खुदरा कर्ज की कुल घरेलू कर्ज में सर्वाधिक 54.9 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसका अधिकांश इस्तेमाल उपभोक्ता खर्च में हो रहा है। यह डिस्पोजेबल इनकम ( यानी खर्च करने योग्य आय) का 25.7% है। 

इतना ही नहीं, पिछले कई वर्षों में इन कर्ज की हिस्सेदारी में इजाफा हो रहा है और इनकी वृद्धि दर हाउसिंग लोन और बिजनेस लोन से ज्यादा है।

साथ ही प्रति व्यक्ति कर्ज में भी वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के हर व्यक्ति पर औसतन 4.8 लाख रुपये का कर्ज है, जो  मार्च 2023 में 3.9 लाख रुपये था। 

कैसी है परिवारों की वित्तीय सेहत?

भारतीय परिवारों की वित्तीय सेहत का आकलन बताता है कि 2023-24 में घरों की वित्तीय सेहत में मजबूती आई है। 2019-20 की तीसरी तिमाही के बाद से एसेट्स की कीमतों में हुई वृद्धि ने कुल फाइनेंशियल एसेट्स की कीमतों की वृद्धि में सर्वाधिक योगदान दिया। 

आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 24 तक कुल घरेलू वित्तीय संपत्ति में जमा और बीमा व पेंशन फंड्स की हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी रही। वहीं शेयर और निवेश फंड्स की हिस्सेदारी में भी इजाफा देखने को मिला।

हालांकि, आरबीआई का रिपोर्ट घरेलू कर्ज में लगातार हो रही वृद्धि (विशेषकर कम रेटिंग वाले कर्जदारों) की करीबी से निगरानी पर बल देता है।

आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, अनसिक्योर्ड खुदरा कर्ज में गिरावट आई है। हालांकि, इसके बावजूद खुदरा कर्ज में इसकी हिस्सेदारी 25 फीसदी और कुल कर्ज में इसकी हिस्सेदारी 8.3 फीसदी बनी हुई है। समग्र रिटेल पोर्टफोलियो के मुकाबले इसकी एसेट  क्वालिटी में गिरावट आई है।  

इसका ग्रॉस नन परफॉर्मिंग एसेट्स (जीएनपीए) मार्च 2025 में 1.2 फीसदी से बढ़कर 1.8 फीसदी हो गया। वहीं, संभावित तनाव की स्थिति को दर्शाने वाले एसएमए अनुपात में भी वृद्धि हुई है। 

डिपॉजिट बढ़ा, क्रेडिट (कर्ज) ग्रोथ घटा

बैंकों की जमा राशि या डिपॉजिट ग्रोथ में दहाई अंकों की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों में गिरावट के बावजूद बैंकों की जमा राशि में सालाना आधार पर 2024-25 में 10.7 फीसदी की वृद्धि हुई। टर्म डिपॉजिट के मामले में ग्रोथ चालू और बचत खातों से अधिक रहा। 13 जून 2025 तक सालाना स्तर पर कमर्शियल बैंकों की जमा वृद्धि दर 10.5 फीसदी रही।

वहीं, क्रेडिट ग्रोथ या कर्ज वृद्धि में सभी बैंक समूहों (सरकारी, निजी और विदेशी बैंक) में गिरावट देखने को मिला। हालांकि, सरकारी बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ निजी बैंकों के मुकाबले अधिक रहा। सालाना आधार पर देखा जाए तो 13 जून 2025 तक बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ घटकर 9.6 फीसदी रह गई। कुल कर्ज में कृषि और औद्योगिक कर्ज की हिस्सेदारी में भी गिरावट देखने को मिली।

GNPA में सुधार

अगर एसेट  क्वालिटी या परिसंपत्ति गुणवत्ता के लिहाज से देखें तो बैंकों के जीएनपीए और एनएनपीए अनुपात में गिरावट आई और यह कई दशकों के निम्नतम स्तर पर चला गया। बैंकों का जीएनपीए और एनएनपीए क्रमश: 2.3 और 0.5 फीसदी रहा।

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कई वर्षों में बड़े कर्जदारों की क्रेडिट क्वालिटी में व्यापक सुधार हुआ है और बैंकों के कुल जीएनपीए में इनकी हिस्सेदारी घटकर मार्च 2025 में 37.5 फीसदी हो गई। वहीं, बैंकों के कुल कर्ज में इनकी हिस्सेदारी 43.9 फीसदी रही।

किसी एक बैंक में पांच करोड़ रुपये से उससे अधिक के कर्ज वाले व्यक्ति या संस्थाओं को बड़े कर्जदार के तौर पर चिह्नित किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, बड़े कर्जदारों का जीएनपीए सितंबर 2023 के 3.8 फीसदी से घटकर मार्च 2025 में 1.9 फीसदी हो गया।

शेयर बाजार का हाल!

सुस्त ग्रोथ, एफपीआई निकासी और वैश्विक बिकवाली की वजह से अक्तूबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच भारतीय शेयर बाजार में तेज गिरावट आई। मार्च 2025 के बाद से वैश्विक बिकवाली और एफपीआई निकासी की स्थिति लगभग रिकवर हो चुकी है। हालांकि, इसके बावजूद अन्य बड़े बाजारों के मुकाबले भारतीय शेयर बाजार अभी भी अंडरपरफॉर्मर बना हुआ है।

रिपोर्ट बताती है कि शेयरों, विशेषकर मिड कैप और स्मॉल कैप, की कीमतों में ऊपरी स्तर से गिरावट के बावजूद ये ऐतिहासिक रूप से  ऊपरी स्तर पर बने हुए हैं। मार्च 2025 के अंत तक लगभग दो-तिहाई शेयर अपने संबंधित बेंचमार्क पी/ई अनुपात से अधिक पी/ई अनुपात के साथ ट्रेड कर रहे थे।

गौरतलब है कि पिछले दशक के दौरान भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों की संख्या में व्यापक इजाफा हुआ है और उनके निवेश का पैटर्न यह बताता है कि उनका इन्वेस्टमेंट  काफी विविध है। हालांकि, यह लार्ज, मिड और स्मॉल कैप के मुकाबले माइक्रोकैप में ज्यादा है। माइक्रोकैप स्टॉक में अन्य शेयरों के मुकाबले रिटर्न की संभावना ज्यादा होती है, लेकिन ये आर्थिक और वित्तीय स्थितियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इस वजह से बाजार में आने वाली गिरावट खुदरा निवेशकों को ज्यादा झटके दे सकती है और उनका नुकसान बड़ा हो सकता है।

ऐतिहासिक ऊंचाई पर म्युचुअल फंड्स

योगदान और खातों की संख्या दोनों के मामले में एसआईपी (व्यवस्थित निवेश योजना) में हाल के महीनों में आई गिरावट के बावजूद घरेलू  म्युचुअल फंड्स उद्योग का एयूएम (एसेट अंडर मैनेजमेंट) लगातार बढ़ रहा है और यह मई 2025 में 72.2 लाख करोड़ रुपये की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचने में सफल रहा। 

एसआईपी खातों की संख्या में आई गिरावट की वजह भारतीय प्रतिभूति विनियामक बोर्ड (सेबी) का वह दिशानिर्देश है, जिसकी वजह से जनवरी 2025 से विफल एसआईपी को बंद या रद्द माना जाएगा। इक्विटी आधारित स्कीम्स में देखें तो सेक्टोरल या थीमैटिक फंड्स को पिछले डेढ़ सालों में (पिछले तीन महीने को छोड़कर) सबसे ज्यादा निवेश मिला है।  

बिजनेस और अर्थव्यवस्था से जुड़े अन्य मामलों की विस्तृत जानकारी प्रदान करती एक्सप्लेनर रिपोर्ट को विश्वास न्यूज के एक्सप्लेनर सेक्शन में पढ़ा जा सकता है।

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