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Explainer: आंकड़ों में समझें, कर्ज-GDP अनुपात में भारत और अन्य शीर्ष अर्थव्यवस्था की क्या है स्थिति?

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टेस्ला के सीईओ एलन मस्क को डिपार्टमेंट ऑफ गवर्मेंट एफिशिएंसी (DOGE) का को-हेड नियुक्त किया है। मस्क ट्रंप के चुनाव प्रचार से लेकर उसके नतीजे आने के बाद तक कई मुद्दों पर मुखरता से टिप्पणी कर रहे हैं। जिस एक मुद्दे पर उन्होंने सर्वाधिक मुखर होकर अपनी राय रखी, वह है अमेरिकी अर्थव्यवस्था और उसके ऊपर बढ़ता कर्ज, जिसे उन्होंने ‘खौफनाक’ बताया। 

अमेरिका के राष्ट्रीय कर्ज के आंकड़ों से संबंधित ‘अमेरिका’ नाम के एक्स हैंडल से शेयर किए गए पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए मस्क ने इसे ‘संकट’ करार दिया। 

एक्स पोस्ट में शामिल आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका का कुल कर्ज 35.8 ट्रिलियन डॉलर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में अमेरिका का कर्ज-जीडीपी अनुपात 121% रहा, जिसके 2025 में करीब 124 फीसदी रहने का अनुमान है। इन आंकड़ों के सामने आने के बाद भारत में भी सोशल मीडिया पर देश के कर्ज-जीडीपी अनुपात को लेकर बहस छिड़ गई। 

कर्ज-जीडीपी अनुपात के मामले में भारत और अन्य देशों के आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर कर्ज-जीडीपी अनुपात (डेट टू जीडीपी रेशियो) क्या होता है और इसका इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में किस संदर्भ में किया जाता है।

क्या है कर्ज-जीडीपी अनुपात?

सामान्य और सरल भाषा में समझें तो इस शब्द का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में किसी देश के कुल कर्ज और उसकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का अनुपात है, जिसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

इस अनुपात का इस्तेमाल किसी देश या अर्थव्यवस्था की कर्ज भुगतान की क्षमता का आकलन करने में किया जाता है।

इस अनुपात को निकालने के लिए सामान्य फॉर्मूला का इस्तेमाल किया जाता है, जो है: कर्ज/जीडीपी

यहां कर्ज का मतलब कुल कर्ज से होता है। भारत के संदर्भ में इसे समझें  तो यह केंद्र और राज्यों का कुल कर्ज हुआ। वहीं, जीडीपी का मतलब संबंधित वर्ष में उत्पादित वस्तु और सेवाओं का कुल मूल्य से है।

क्या कहते हैं आंकड़ें?

2024 में दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्था संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान और भारत थी और जीडीपी-ऋण अनुपात के आंकड़ों को तुलनात्मक तौर पर देखा जाए तो भारत दूसरा न्यूनतम कर्ज-जीडीपी अनुपात वाली अर्थव्यवस्था है। बताते चलें कि पीपीपी यानी परचेजिंग पावर पैरिटी के आधार पर भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है।

2024 में सर्वाधिक जीडीपी-कर्ज अनुपात जापान का रहा है। इसके बाद अमेरिका दूसरे नंबर, तीसरे नंबर पर चीन, चौथे पायदान पर भारत और पांचवें पायदान पर जर्मनी रहा। 

ब्रिटेन को शामिल करने के बाद दुनिया की छह बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आधार पर देखें तो 2024 में जीडीपी-ऋण अनुपात में जापान पहले नंबर पर, अमेरिका दूसरे पायदान पर, ब्रिटेन तीसरे नंबर पर, चीन चौथे पायदान और भारत पांचवें व जर्मनी छठे पायदान पर रहा।

ब्रिटेन को शामिल करने के बाद दुनिया की 6 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात दूसरा न्यूनतम है।

यानी दुनिया की छह बड़ी और शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में भारत दूसरा न्यूनतम जीडीपी-ऋण अनुपात वाली अर्थव्यवस्था है।

बजट 2024-25 में भारत सरकार की कुल कर्ज स्थिति का विवरण मौजूद है। इन आंकड़ों के मुताबिक, 31 मार्च 2024 को भारत का कुल कर्ज (संशोधित अनुमान) 168,72,554.16 करोड़ रुपये रहा, जिसके 31 मार्च 2025 तक 181,68,456.91 (बजटीय अनुमान) करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। 

ग्राफिक्स में देखा जा सकता है कि 2024 में कुल कर्ज में बाह्य कर्ज या एक्सटरनल डेट की मात्रा 5,37,484.10 करोड़ रुपये रही, जिसके 31 मार्च 2025 तक बढ़कर 5,74,927.51 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

पंजाब नेशनल बैंक के अर्थशास्त्री कार्तिक खंडेलवाद की तरफ से 27 जून 2024 की लिखी रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 24 में भारत का बाह्य कर्ज-जीडीपी अनुपात वित्त वर्ष 23 के 19 फीसदी से घटकर 18.7 फीसदी हो गया और 2021 के बाद से इसमें लगातार गिरावट की स्थिति दर्ज की जा रही है।

राज्यों की क्या है स्थिति?

तय सीमा से अधिक राजकोषीय घाटा और लगातार बढ़ते ऋण-जीडीपी अनुपात की वजह से भारत के राज्यों की राजकोषीय सेहत पर दबाव  की स्थिति बनी हुई है।  वित्त वर्ष 2024-25 के राज्यों के बजट की एनालिसिस करती एनएसई की स्टेट ऑफ स्टेट्स रिपोर्ट में कुल 21 राज्यों की वित्तीय सेहत का आकलन किया गया है,  जिनकी देश की कुल जीडीपी में 95 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है। 

इस रिपोर्ट में जिन राज्यों की वित्तीय सेहत का आकलन किया गया है, उनमें शामिल हैं-आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।

रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से कई राज्यों का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 40 फीसदी से अधिक है और इस वजह से उन्हें अपने राजस्व का एक बड़ा हिस्सा कमिटेड एक्सपेंडीचर के तौर पर खर्च करना होता है, जिससे विकास संबंधी परियोजनाओं पर खर्च करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।

आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 2000 की शुरुआत से फिस्कल रिस्पॉन्सबिलिटी लेजिस्लेशंस (एअआरएल) को अपनाए जाने की वजह से राज्यों के मुख्य राजकोषीय मानकों में सुधार आया है और राज्यों का समग्र राजकोषीय घाटा (जीएफडी) जीडीपी के मुकाबले 1998-99  से 2003-04 की अवधि के 4.3 फीसदी से घटकर 2004-05 से 2023-24 की अवधि में 2.7 फीसदी हो गया।

मार्च 2004 में जहां राज्यों का समग्र कर्ज कुल जीडीपी का 31.8 फीसदी था, वह 2024 के मार्च अंत में घटकर 28.5 फीसदी हो चुका है। हालांकि, यह फिस्कल रिस्पॉन्सबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (FRBM) रिव्यू कमेटी (2017) के अनुशंसित  स्तर 20 फीसदी से ऊपर बना हुआ है। 

रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2024 के अंत तक कई राज्यों का कुल कर्ज उनकी जीएसडीपी के मुकाबले 40 फीसदी से अधिक बना हुआ है। इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश (56.1 फीसदी), हिमाचल प्रदेश (45.2%) पंजाब (46.7 फीसदी) शामिल है। 

Source-RBI Annual Report

वहीं, जिन राज्यों का कुल कर्ज उनकी जीसएडीपी के मुकाबले 30 फीसदी से अधिक है, उनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, हरियाणा,  केरल, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड , राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं।

उच्च कर्ज-जीडीपी से जुड़ा मिथ

जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है कि कर्ज-जीडीपी अनुपात किसी भी देश की जीडीपी के मुकाबले कुल कर्ज के अनुपात को बताता है, जिससे यह पता चलता है कि किसी देश या अर्थव्यवस्था की कर्ज भुगतान की क्षमता कितनी बेहतर है। 

कर्ज-जीडीपी के अधिकतम अनुपात को लेकर अक्सर यह समझा जाता है कि 100% से अधिक अनुपात सॉवरेन डिफॉल्ट की संभावना को दर्शाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। पिछले काफी वर्षों से जापान का कर्ज-जीडीपी अनुपात 200 फीसदी से अधिक के स्तर पर बना हुआ है, लेकिन इसके बावजूद सॉवरेन डिफॉल्ट जैसी किसी स्थिति का जापान को सामना नहीं करना पड़ा। 

वहीं, श्रीलंका करीब 100 फीसदी के अनुपात के साथ सॉवरेन डिफॉल्ट की स्थिति में पहुंच गया। आईएमएफ के आंकड़ों के मुताबिक, 2020, 2021 और 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, श्रीलंका का कर्ज-जीडीपी अनुपात क्रमश:96.9, 102.7 और 115.9 फीसदी रहा। 

क्या कहते हैं अर्थशास्त्री?

कर्ज-जीडीपी अनुपात और इससे जुड़ी सॉवरेन डिफॉल्ट की संभावना को लेकर हमने अर्थशास्त्री अरुण कुमार से संपर्क किया और उन्होंने बताया, “कर्ज-जीडीपी अनुपात का अधिक होना सॉवरेन डिफॉल्ट का पैमाना नहीं है। सॉवरेन डिफॉल्ट की संभावनाएं कई बातों पर निर्भर करती है, जो किसी देश की कर्ज भुगतान की क्षमता पर निर्भर करता है। साथ ही इसमें कुल कर्ज में एक्सटरनल डेट की मात्रा कितनी है, इस पर भी निर्भर करता है, क्योंकि इसका भुगतान करने के लिए आपको अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करना होता है।”

बताते चलें कि एनएसओ यानी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वित्त वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का पहला अग्रिम अनुमान जारी कर दिया है। इस अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 25 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है, जो चार सालों का न्यूनतम स्तर है।

यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुमान 6.6 फीसदी से थोड़ा कम है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 24 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 8.2 फीसदी रही थी।

बिजनेस और अर्थव्यवस्था से जुड़े अन्य मामलों की विस्तृत जानकारी प्रदान करती एक्सप्लेनर रिपोर्ट को विश्वास न्यूज के एक्सप्लेनर सेक्शन में पढ़ा जा सकता है।

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