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Explainer: कैसे होती है RBI गवर्नर की नियुक्ति? जानिए महंगाई और मॉनेटरी पॉलिसी में क्या है गवर्नर की भूमिका

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। ऊर्जित पटेल का कार्यकाल खत्म होने के बाद भारत सरकार (वित्त मंत्रालय) ने डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनमिक अफेयर्स के पूर्व सचिव शक्तिकांत दास को भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया था। अपने लंबे कार्यकाल के दौरान दास ने कई बैंकिंग और नियामकीय चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया, जिसमें आईएलएंडएफएस संकट, अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 का अभूतपूर्व प्रभाव और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाई चेन संकट जैसे मुद्दे शामिल थे। 

आईएलएंडएफएस संकट बड़ा वित्तीय संकट था, जिसने अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को व्यापक रूप से प्रभावित किया। दास के कार्यकाल की एक और बड़ी उपलब्धि एनपीए (नन परफॉर्मिंग असेट्स) में सुधार रहा। बैंकों का ग्रॉस एनपीए 2018 में 10.8 फीसदी था, जो मार्च 2024 में घटकर 2.8 फीसदी हो गया। दास के कार्यकाल में आरबीआई ने सरकार को (वित्त वर्ष 23-24 में) रिकॉर्ड 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश का भुगतान किया।

हालांकि, महंगाई को तय लक्ष्य 4 (+-2%) के भीतर रखना दास के कार्यकाल की सर्वाधिक बड़ी चुनौती रही  और उनकी जगह नियुक्त किए गए अगले गवर्नर के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी, जब उन्हें महंगाई को नियंत्रण में रखते हुए ब्याज दरों में बदलाव की मांग के दबाव जैसे प्रमुख मुद्दे को संबोधित करना होगा। बताते चले कि केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच यह टकराव का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है।

दास के नेतृत्व में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक आठ दिसंबर को हुई थी, जिसमें बतौर गवर्नर दास ने बढ़ी हुई महंगाई दर को ध्यान ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की। हालांकि, इस बैठक से पहले केंद्र सरकार के दो केंद्रीय मंत्रियों ने ब्याज दरों में कटौती की मांग को समय की जरूरत बताया था।

आठ दिसंबर को हुई एमपीसी (कैसे काम करता है एमपीसी को समझने के लिए देखें यह एक्सप्लेनर) की बैठक में आरबीआई ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ग्रोथ अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी करते हुए समान वर्ष के लिए महंगाई के अनुमान को बढ़ाकर 4.8 फीसदी कर दिया, जो आरबीआई के तय लक्ष्य 4 (+-2%) से अधिक है।

इस बैठक के बाद सरकार ने राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा को आरबीआई का अगला गवर्नर नियुक्त किए जाने की घोषणा की। 1990 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस अधिकारी मल्होत्रा आरबीआई के 26वें गवर्नर होंगे।

RBI एक्ट में क्या है प्रावधान?

आरबीआई के गवर्नर की नियुक्ति रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 की धारा 8 के तहत की जाती है और नियमों के मुताबिक, केंद्र सरकार आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति करती है। एक्ट की धारा 7 या सेक्शन 7 में बैंक के मैनेजमेंट का जिक्र है और सेक्शन 8 में आरबीआई की सेंट्रल बोर्ड और डायरेक्टर्स के कार्यकाल का जिक्र है।

सेक्शन 8 में आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड के गठन का जिक्र है। इसके मुताबिक, आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड में एक गवर्नर और चार डिप्टी गवर्नर समेत कुल 15 सदस्य शामिल होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार नियुक्त करेगी।

इसी सेक्शन में केंद्रीय या सेंट्रल बोर्ड के प्रत्येक सदस्य के कार्यकाल, पुनर्नियुक्ति के लिए उनकी योग्यता और उन्हें उनके पद से हटाए जाने के आधारों का भी जिक्र है।

12 दिसंबर 2018 को जब शक्तिकांस दास की गवर्नर के पद पर नियुक्ति हुई थी, तब सरकार ने इसी एक्ट के तहत दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें आरबीआई का गवर्नर नियुक्त किया था।

12 दिसंबर 2018 को केंद्र सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनमिक अफेयर्स के पूर्व सचिव शक्तिकांत दास को गवर्नर बनाए जाने की अधिसूचना जारी की थी।

FSRASC की भूमिका

2016 में लोकसभा में आरबीआई के गवर्नर के चयन की प्रक्रिया के बारे में पूछे गए (अतारांकित) सवाल का जवाब देते हुए तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने बताया था, “कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) ने आरबीआई के गवर्नर और डिप्टी गवर्नस समेत फाइनेंशियल  सेक्टर रेग्युलेटरी बॉडीज के चेयरपर्सन और सदस्यों की नियुक्ति के लिए फाइनेंशियल सेक्टर रेग्युलेटरी अप्वाइंट्मेंट्स सर्च कमेटी  (FSRASC) के गठन को मंजूरी दी है।”

इस समिति में कैबिनेट सचिव, मौजूदा आरबीआई गवर्नर,फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्रेटरी और दो अन्य स्वतंत्र सदस्य होते हैं, जो आरबीआई के गवर्नर पद के लिए योग्य उम्मीदवारों की सूची बनाते हैं।

इसके बाद इस सूची को कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) को भेजा जाता है और यही समिति अगले गवर्नर के नाम पर मुहर लगाती है। कैबिनेट की नियुक्ति समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के पास होती है।

RBI गवर्नर की योग्यता

आरबीआई एक्ट, 1934 में गवर्नर पद के लिए किसी विशिष्ट योग्यता का जिक्र नहीं है। अभी तक के गवर्नर की नियुक्ति के आधार पर देखें तो इस पद पर पारंपरिक रूप से किसी नौकरशाह या अर्थशास्त्री की नियुक्ति की जाती रही है।

क्या होता है काम?

आरबीआई गवर्नर मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का हेड होता है। आरबीआई अधिनियम की धारा 45जेडबी छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के गठन का प्रावधान करता है।

मौद्रिक नीति समिति का गठन पहली बार 29 सितंबर 2016 को किया गया था और अभी इस समिति में आरबीआई के गवर्नर समेत कुल 6 सदस्य हैं। यही समिति पॉलिसी रेपो रेट को तय करने का काम करती है, जिसका काम महंगाई को काबू में रखते हुए उसे निर्धारित लक्ष्य के भीतर रखना होता है।

कानून के मुताबिक, साल में कम से कम चार बार इस बार समिति की बैठक अनिवार्य है और समिति के प्रत्येक सदस्यों के पास एक वोट का अधिकार होता है और अगर किसी फैसले को लेकर मत बराबर हो जाएं, तो गवर्नर के पास दूसरा मत डालने का अधिकार होता है।

गौरतलब है कि 5 अगस्त 2016 को केंद्र सरकार ने गजट के जरिए 4 फीसदी कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) का लक्ष्य तय किया था, जिसमें अधिकतम सीमा 6 फीसदी और न्यूनतम सीमा 2 फीसदी (4+_2फीसदी) होगी। 2021 में इस अवधि के समापन होने के बाद केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2021 को 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2026 तक के लिए इसी महंगाई लक्ष्य को बरकरार रखे जाने का फैसला लिया है।

आरबीआई एक्ट के सेक्शन 45ZB के मुताबिक, यही समिति महंगाई लक्ष्य को हासिल करने के लिए ब्याज दरों को तय करती है और यह फैसला बैंकों के लिए बाध्यकारी होता है। 45ZA के मुताबिक, केंद्र सरकार, आरबीआई के साथ सलाह-मशविरा के बाद प्रत्येक पांच साल में महंगाई  दर के लक्ष्य को तय करती है और फिर इस लक्ष्य को आधिकारिक गजेट के जरिए अधिसूचित कर दिया जाता है।

आरबीआई के पास मौद्रिक नीति को लागू करने के लिए कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उपकरण होते हैं, लेकिन महंगाई को नियंत्रित करने और आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए वह मुख्य रूप से कुछ अहम टूल्स या उपकरण का इस्तेमाल करता है, जिसमें रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर समेत अन्य टूल्स शामिल हैं। विस्तृत जानकारी के लिए देखें यह एक्सप्लेनर:

Explainer:: ग्रोथ बढ़ाने व महंगाई घटाने की चुनौती के बीच आखिर कैसे काम करती है मौद्रिक नीति ?

RBI की स्वायत्तता 

आरबीआई के पास अपने फैसले लेने की स्वतंत्रता है। हालांकि, आरबीआई एक्ट का सेक्शन 7 केंद्र सरकार को जनहित में (आरबीआई के गवर्नर से सलाह-मशविरा के बाद) आरबीआई को दिशानिर्देश देने का अधिकार देता है। हालांकि, ब्याज दरों में बदलाव और फैसले लेने की स्वायत्तता को लेकर अतीत में कई बार आरबीआई और सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन चुकी है, जिसमें पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी, डी सुब्बाराव, रघुराम राजन और ऊर्जित पटेल का कार्यकाल शामिल है।

राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय व अर्थव्यवस्था और बिजनेस से संबंधित अन्य एक्सप्लेनर रिपोर्ट्स को विश्वास न्यूज के एक्सप्लेनर सेक्शन में पढ़ा जा सकता है। साथ ही हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों और अन्य उप-चुनावों के दौरान वायरल हुए दावों की फैक्ट चेक रिपोर्ट को विश्वास न्यूज के चुनाव सेक्शन में पढ़ा जा सकता है।

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