नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। सूचनाओं से छेड़छाड़ कर उसे गलत संदर्भ में लोगों तक पहुंचाने का इतिहास काफी पुराना रहा है। तकनीकी उन्नति ने न केवल सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ के काम को आसान बना दिया है, बल्कि इसके प्रसार को व्यापक मंच दिया है। आज के समय में फेक न्यूज एक वैश्विक चुनौती है, जो अब केवल राजनीतिक दुष्प्रचार तक सीमित नहीं है। कोविड-19 महामारी के समय में यह इन्फोडेमिक के रूप में सामने आया और अब इसके दायरे में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, मनोरंजन और सामान्य सूचना शामिल है। सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म की मौजूदगी ने गलत और भ्रामक सूचनाओं के प्रसार को गति दी है और यह लगातार तेजी से अपने स्वरूप को बदल रहा है।
भारत में भी मिस-इन्फॉर्मेशन का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है और हमारे समाज का शायद ही ऐसा कोई कोना है, जो इसके दुष्प्रभावों से अप्रभावित हो। आज के समय में यह एक बड़ी चुनौती है, जिसकी वजह से न केवल आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ रही हैं।
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2018 से नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने इस श्रेणी के तहत आंकड़ों को प्रकाशित करना शुरू किया है और 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में फेक न्यूज से संबंधित 280 मामले दर्ज किए गए, जिसकी संख्या 2019 में बढ़कर 486 हो गई। (कोविड महामारी की वजह से) 2020 में ऐसे मामलों की संख्या में व्यापक इजाफा हुआ और इसकी संख्या बढ़कर 1527 हो गई, जो करीब 200 फीसदी से अधिक का इजाफा है।
हालांकि, 2021 में ऐसे मामलों की संख्या घटकर 882 हो चुकी है। एनसीआरबी आईपीसी की धारा 505 के तहत दर्ज मामलों को इस श्रेणी में शामिल मानते हुए संबंधित डेटा को प्रकाशित करता है।
2021 में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, भारत, अमेरिका, ब्राजील और स्पेन मिस-इन्फॉर्मेशन से सर्वाधिक प्रभावित शीर्ष चार देश थे और मिस-इन्फॉर्मेशन को फैलानेके मामले में सोशल मीडिया की सर्वाधिक भूमिका रही।
विश्वास न्यूज ने 2022 के दौरान हिंदी भाषा में करीब डेढ़ हजार से अधिक फैक्ट चेक रिपोर्ट को प्रकाशित किया और इन रिपोर्ट्स का विश्लेषण हमें 2022 में भारत में मिस-इन्फॉर्मेशन के चलन या ट्रेंड्स के बारे में बताता है। विश्वास न्यूज की साल के दौरान कुल फैक्ट चेक रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर हमने पाया कि 2022 के चुनावी दुष्प्रचार के मामलों में ईवीएम से संबंधित दावों की संख्या बेहद मामूली रही। वहीं कोविड-19 के बारे में बात की जाए तो इससे संबंधित दुष्प्रचार के मामलों में भी कमी देखने को मिली, जिसकी संख्या 2020 और 2021 में सर्वाधिक थी।
फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत हुई और मार्च के महीने में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह घटनाक्रम प्रमुखता से छाया रहा, जिसकी वजह से इससे संबंधित फैक्ट चेक क्लेम की संख्या में इजाफा हुआ। मार्च महीने में विश्वास न्यूज की कुल फैक्ट चेक रिपोर्ट्स में रूस-यूक्रेन युद्ध से संबंधित दावे या क्लेम की हिस्सेदारी करीब 27 फीसदी से अधिक रही।
विश्वास न्यूज ने मार्च महीने में इस युद्ध से संबंधित सर्वाधिक फैक्ट चेक रिपोर्ट्स प्रकाशित किए, जिन्हें यहां देखा जा सकता है। रूस यूक्रेन युद्ध के अलावा इन महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हुए, जिससे संबंधित मिस-इन्फॉर्मेशन सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर बहुलता से वायरल हुए। फरवरी और मार्च महीने में कुल फैक्ट चेक स्टोरी में विधानसभा चुनावों से संबंधित भ्रामक दावों की जांच करती रिपोर्ट की हिस्सेदारी क्रमश: करीब 19 फीसदी और 12 फीसदी से अधिक रही।
युद्ध लंबा खिंचने से इससे संबंधित भ्रामक और फेक दावों की संख्या में गिरावट आई और अगले कुछ महीनों में इसकी जगह राष्ट्रीय घटनाक्रम ने ले ली। सात सितंबर से दक्षिण भारत से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत हुई और सितंबर-अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में इस यात्रा को लेकर जारी दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर हावी दिखा।
2022 में फाइल की गई विश्वास न्यूज की फैक्ट चेक रिपोर्ट्स का विश्लेषण यह बताता है, ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की शुरुआत से लेकर उसके जारी रहने तक सोशल मीडिया पर इससे संबंधित भ्रामक और फेक दावों को खूब शेयर किया है। सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में प्रकाशित कुल रिपोर्ट्स में इस यात्रा से संबंधित फैक्ट चेक रिपोर्ट्स की हिस्सेदारी क्रमश: करीब 13% से अधिक, करीब 13 फीसदी, करीब 9 फीसदी और 12 फीसदी रही।
‘भारत जोड़ो’ यात्रा से संबंधित भ्रामक और फेक दावों में तस्वीरों और पुराने वीडियो (अधिकांश एडिटेड वीडियो क्लिप) की अधिकता रही, जिसका मकसद इस यात्रा के जरिए राहुल गांधी के खिलाफ दुष्प्रचार करना था। इस यात्रा से संबंधित हमारी प्रमुख फैक्ट चेक रिपोर्ट को यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है।
साल का तीसरा बड़ा ट्रेंड विधानसभा चुनाव (विशेषकर गुजरात) और मोरबी हादसा रहा। अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में विधानसभा चुनाव से जुड़े दुष्प्रचारों में तेजी आई। इन तीन महीनों में विश्वास न्यूज की कुल फैक्ट चेक रिपोर्ट्स में चुनावी फैक्ट चेक रिपोर्ट्स की हिस्सेदारी क्रमश: करीब 10 फीसदी, करीब 15 फीसदी और करीब 12 फीसदी रही।
चुनाव के दौरान मोरबी पुल हादसे से जुड़े फेक दावे भी सामने आए, जिनमें सर्वाधिक चर्चित दावा क्लेम आरटीआई के हवाले से किया गया यह दावा कि मोरबी हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा पर स्थानीय प्रशासन की तरफ से 30 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस दावे की जांच करती विश्वास न्यूज की फैक्ट चेक रिपोर्ट्स को यहां पढ़ा जा सकता है।
दूसरा चर्चित दावा आम आदमी पार्टी का फेक घोषणापत्र रहा, जिसमें केवल अल्पसंख्यक समुदाय के लिए की गई घोषणाओं का जिक्र था। हमारी जांच में यह दावा भी गलत साबित हुआ, जिसकी फैक्ट चेक रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।
इसके अलावा चुनावी दुष्प्रचार में सर्वाधिक क्लेम नेताओं के ऑल्टर्ड वीडियो क्लिप, ऑल्टर्ड तस्वीरें और फेक एग्जिट पोल से संबंधित रहे। पिछले कुछ चुनावों में जहां ईवीएम को लेकर दुष्प्रचार वाले क्लेम की संख्या ज्यादा होती थी, लेकिन इस बार यह ट्रेंड उलटता नजर आया। अक्टूबर से दिसंबर 2022 के बीच विश्वास न्यूज ने मात्र दो ऐसे क्लेम को फैक्ट चेक किया, जो ईवीएम दुष्प्रचार से संबंधित थीं। पहली रिपोर्ट पूर्व चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति के नाम से वायरल हुए फर्जी बयान की जांच थी, जो ईवीएम हैकिंग से संबंधित था।
वही, दूसरी रिपोर्ट गुजरात में अंतिम चरण के मतदान के बाद सामने आई उस वीडियो से संबंधित थी, जिसे ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का दावा करते हुए वायरल किया गया था।
ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय सोशल मीडिया पर ऐसे कई क्लेम शेयर किए गए, जिसमें उन्हें सनातनी समर्थक बताया गया। अक्टूबर महीने में ऐसे कई क्लेम सामने आए। इस महीने विश्वास न्यूज की कुल फैक्ट चेक रिपोर्ट्स में इससे संबंधित क्लेम की हिस्सेदारी करीब आठ फीसदी रही। नवंबर और दिसंबर महीना फीफा वर्ल्ड कप और पठान मूवी विवादों के कारण सुर्खियों में रहा। दोनों महीनों में कुल फैक्ट चेक रिपोर्ट्स में फीफा और पठान फिल्म से संबंधित दावों की हिस्सेदारी करीब 17 फीसदी रही।
निष्कर्ष: 2020 के शुरुआती तीन महीनों में जहां रूस-यूक्रेन जैसी अंतरराष्ट्रीय घटना और यूपी, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव जैसी राष्ट्रीय घटनाओं से संबंधित मिस-इन्फॉर्मेशन की बहुलता देखने को मिली, वहीं सितंबर के बाद से भारत जोड़ो यात्रा से संबंधी भ्रामक सूचनाओं की अधिकता रही। साल के अंत में अक्टूबर से दिसंबर की अवधि के दौरान सर्वाधिक संख्या में विधानसभा चुनाव, पठान मूवी विवाद और फीफा वर्ल्ड कप से संबंधित मिस-इन्फॉर्मेशन के मामलों की संख्या ज्यादा रही।
साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा क्लेम गुजरात चुनाव से संबंधित रहे। इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान ईवीएम से संबंधित भ्रामक सूचनाओं की संख्या नदारद रही और सबसे ज्यादा नेताओं के ऑल्टर्ड वीडियो क्लिप और ऑल्टर्ड इमेज को शेयर किया गया।
वहीं, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की ऑल्टर्ड इमेज और वीडियो को शेयर किया गया, जो इस यात्रा से संबंधित नहीं थीं। पठान फिल्म के प्रोमोशन को लेकर हुए विवाद के बाद सोशल मीडिया पर ऐसे कई एडिटेड वीडियो आए, जिसके जरिए शाहरुख खान की राष्ट्रीयता पर सवाल उठाए गए। कुल मिलाकर देखा जाए तो 2022 उठापटक का वर्ष रहा और भारत का सोशल मीडिया भी इन्हीं बदलती घटनाओं से संबंधित मिस-इन्फॉर्मेशन के ट्रेंड का अनुसरण करता नजर आया। साथ ही 2022 के दौरान कोविड-19 से संबंधित मिस-इन्फॉर्मेशन का प्रसार थमता नजर आया। इसकी वजह से महामारी के प्रसार में आई कमी, टीकाकरण का बढ़ता दायरा और लोगों में बढ़ती जागरूकता रही। जनवरी से दिसंबर के बीच विश्वास न्यूज की कुल फैक्ट चेक रिपोर्ट्स में कोविड संबंधी फैक्ट चेक रिपोर्ट्स की हिस्सेदारी 2 फीसदी से भी कम रही।
Disclaimer- इस विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में दिसंबर के आंकड़ें 23 दिसंबर तक विश्वास न्यूज हिंदी में प्रकाशित रिपोर्ट के आंकड़ें हैं।
The post Vishvas News Analysis: यूक्रेन युद्ध, ‘भारत जोड़ो’, चुनाव और पठान विवाद को लेकर खूब फैलाया गया झूठ, जानें क्या रहे 2022 में मिस-इन्फॉर्मेशन के ट्रेंड्स appeared first on Vishvas News.
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