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रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज (एसवीआर) ने 2010 के एक रिपोर्ट में दावा किया कि प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने एक विमान को हाल ही में अफगानिस्तान की एक गुफा में देखा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह विमान एक टाइम वेल में फंसा हुआ है अथवा इसके कारण सुरक्षित बना हुआ है. टाइम वेल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने की कोशिश करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता है.
रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज (एसवीआर) का कहना है कि यह महाभारत कालीन विमान है और जब इसका इंजन शुरू होता है तो इससे बहुत सारा प्रकाश निकलता है. इस एजेंसी ने 21 दिसंबर 2010 को इस आशय की रिपोर्ट अपनी सरकार को पेश की थी. रसियन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस विमान में चार मजबूत पहिए लगे हुए हैं. कहा जाता है कि यह विमान हथियारों से सुसज्जित भी है.
रामायण में भी पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है जिसमें बैठकर रावण सीताजी को हर ले गया था. हनुमान भी सीता की खोज में समुद्र पार लंका में उड़ कर ही पहुंचे थे. रावण के पास पुष्पक विमान था जिसे उसने अपने भाई कुबेर से हथिया लिया था. राम-रावण युद्ध के बाद श्रीराम ने सीता, लक्ष्मण तथा अन्य लोगों के साथ सुदूर दक्षिण में स्थित लंका से कई हजार किमी दूर उत्तर भारत में अयोध्या तक की दूरी हवाई मार्ग से पुष्पक विमान द्वारा ही तय की थी. पुष्पक विमान रावण ने अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक हासिल किया था. रामायण में मेघनाद द्वारा उड़ने वाले रथ का प्रयोग करने का भी उल्लेख मिलता है.
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के अनुसार, जब हनुमानजी सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे तो उन्होंने देखा की रावण की लंका पूरी तरह सोने से बनी हुई है. सीता की खोज करते समय हनुमानजी ने पहली बार पुष्पक विमान देखा. पुष्पक की ऊंचाई ऐसी थी कि मानो वह आकाश को स्पर्श कर रहा हो. यह सोने से बना हुआ था और इसकी सुंदरता भी अद्भुत थी. इस विमान में कई दुर्लभ रत्न जड़े हुए थे और तरह-तरह के सुंदर पुष्प लगे हुए थे. इन फूलों के कारण पुष्पक ऐसा दिख रहा था, मानो किसी पर्वत पर अलग-अलग वृक्ष लगे हों और उनमें रंग-बिरंगे सुंदर पुष्प लगे हुए हों.
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के सुंदरकांड के सप्तम सर्ग पुष्पक विमान विस्तृत विवरण बताया गया है. उस काल में अन्य सभी देवताओं के बड़े-बड़े और दिव्य विमानों में भी सबसे अधिक आदर और सम्मान पुष्पक विमान को ही दिया जाता था. इस विमान में तरह-तरह के रत्नों से कई प्रकार के पक्षी और अलग-अलग प्रजातियों के सर्प बने हुए थे. पुष्पक में अच्छी प्रजाति के घोड़े भी बनाए गए थे. इस विमान का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था. विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार हैं. पुष्पक को प्राचीन समय का सर्वश्रेष्ठ विमान माना जाता है. पुष्पक में कई ऐसी विशेषताएं थीं जो अन्य किसी देवता के विमान नहीं थीं.
पुष्पक बहुत ही दिव्य और चमत्कारी था. ऐसा माना जाता है कि पुष्पक मन की गति से चलता था यानी रावण किसी स्थान के विषय में सिर्फ सोचता था और उतने ही समय में पुष्पक उस स्थान पर पहुंचा देता था. यह विमान रावण की इच्छा के अनुसार बहुत बड़ा भी हो सकता था और छोटा भी. इस कारण पुष्पक से रावण पूरी सेना के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना कर सकता था.
संस्कृत भाषा में विमान केवल उड़ने वाला वाहन ही नहीं होता है वरन इसके कई अर्थ हो सकते हैं, यह किसी मंदिर या महल के आकार में भी हो सकता है. ऐसा भी दावा किया जाता है कि कुछेक वर्ष पहले ही चीनियों ने ल्हासा, तिब्बत में संस्कृत में लिखे कुछ दस्तावेजों का पता लगाया था और बाद में इन्हें ट्रांसलेशन के लिए चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में भेजा गया था. यूनिवर्सिटी की डॉ. रूथ रैना ने हाल ही इस बारे में जानकारी दी थी कि ये दस्तावेज ऐसे निर्देश थे जो कि अंतरातारकीय अंतरिक्ष विमानों (इंटरस्टेलर स्पेसशिप्स) को बनाने से संबंधित थे. हालांकि इन बातों में कुछ बातें अतरंजित भी हो सकती हैं कि अगर यह वास्तविकता के धरातल पर सही ठहरती हैं तो प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान और तकनीक के बारे में ऐसी जानकारी सामने आ सकती है जो कि आज के जमाने में कल्पनातीत भी हो सकती है.
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