नई दिल्ली (Vishvas News)। हरियाणा के रेवाड़ी में 13 साल के एक बच्चे ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घटना मई 2025 की है। पुलिस ने जांच की तो पता चला कि नया मोबाइल न मिलने के कारण बच्चे ने अपनी जान दे दी। बच्चा कई दिनों से नया मोबाइल दिलाने की जिद कर रहा था। इसी तरह अप्रैल 2025 में फरीदाबाद में 15 वर्षीय नितिन ने मोबाइल नहीं मिलने के कारण खुदकुशी कर ली। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि नितिन ने मोबाइल फोन नहीं मिलने के कारण यह कदम उठाया।
ये दोनों घटनाएं एक बड़े संकट की ओर इशारा करती हैं। भारत के अधिकांश घरों में इनदिनों बच्चों में मोबाइल की लत एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है। खाना खिलाने से लेकर शॉर्ट्स देखने के लिए बच्चों के हाथों में मोबाइल थमाया जा रहा है। जिसके कारण कई समस्याओं का जन्म हो रहा है। गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की ओर से 7 जुलाई को एक एडवाइजरी जारी करते हुए लोगों को चेताया गया है। इस एडवाइजरी में कहा गया है, “आज के समय में यह देखा जा रहा है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के बच्चों में व्यावहारिक समस्या ज्यादा है, जिसका एक प्रमुख कारण मोबाइल की लत है। शुरुआत में यह कम रहता है परन्तु धीरे-धीरे यह इतना बढ़ जाता है कि मानसिक समस्या के रूप में सामने आता है। आज के समय में लगभग हर माता-पिता अपने बच्चों के व्यवहार से परेशान हैं ।”

नोएडा के बाल रोग विशेषज्ञ और नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. डीके गुप्ता कहते हैं कि मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं को बढ़ा रहा है। यह केवल एक आदत नहीं है, बल्कि यह एक बढ़ता हुआ स्वास्थ्य संकट है। कई बार देखने में आया है कि मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों के मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है। अभिभावकों को अपने बच्चों को मोबाइल की लत से बचाने की आवश्यकता है।

आइए सबसे पहले जानते हैं गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की ओर से 7 जुलाई को जारी की गई एडवाइजरी के बारे में। इसमें मोबाइल ज्यादा चलाने से आने वाली समस्याओं के बारे में विस्तार से बताते हुए कुछ सलाह भी दी गई हैं।
शारीरिक समस्या
आंखों में समस्या, मोटापा, सिर दर्द, लम्बे समय तक एक ही पोस्चर में बैठे रहने से गर्दन और पीठ में दर्द महसूस करना, खान-पान में समस्या और नींद की समस्या।

भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं
मोबाइल न मिलने पर एन्जायटी और तनाव होना, मोबाइल चलाते वक्त रोकने पर चिड़चिड़ापन होना, गुस्सा आना, पहले जिन चीजों में रुचि थी उसमें रुचि ना होना, कोई मैसेज छूट न जाए या कुछ महत्वपूर्ण अपडेट रह ना जाए, इसका भय बना रहना, असंवेदनशील हो जाना, ईर्ष्यालु प्रवृत्ति का बढ़ जाना, अर्न्तमुखी व्यक्तित्व वाला हो जाना, जिद्दी होना, आकामक और हिंसक प्रवृत्ति का हो जाना।

व्यावाहरिक समस्याएं
लंबे समय तक मोबाइल चलाना, बार-बार मोबाइल चेक करना, जिम्मेदारी से दूर होना, लोगों से ना मिलना-जुलना, मोबाइल का उपयोग ज्यादा करने से अन्य कार्यों पे ध्यान ना देना, रास्ता चलते वक्त या वाहन चलाने वक्त भी मैसेज चेक करना, जिससे दुर्घटना होने की सम्भावना हो सकती है, गुस्से में अपने से बड़ों की अवहेलना करना, उनकी बातें ना मानना, अपने भाई-बहनों के सथ दुर्व्यवहार करना, पढ़ाई में पिछड़ना, सामाजिक नियमों की अवहेलना करना, नशीले प्रदार्थों की तरफ उन्मुख होना, साइबर अपराध बढ़ जाना- जिससे आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।

मोबाइल की लत छुड़ाना आसान नहीं है, लेकिन कुछ कोशिशें करके यह किया जा सकता है। सबसे पहले पेरेंट्स को बच्चों के लिए रोल मॉडल बनना पड़ेगा। बच्चों को बिना काम के मोबाइल फोन न दें। ना खुद बच्चों के सामने ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करें।

आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष व वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर विशाल सिन्हा कहते हैं कि बच्चे काफी संवेदनशील होते हैं। वह अपने आसपास से ही चीजें सीखते हैं। ऐसे में यदि आप बच्चों को मोबाइल की लत से बचाना चाहते हैं तो अभिभावकों को शुरुआत खुद से करनी होगी। बच्चों के साथ समय बिताना, आउटडोर स्पोर्ट्स , मोटिवेट करके मोबाइल की लत से बचाया जा सकता है। आजकल यह काफी सामान्य है कि बच्चों को खाना खिलाते समय मोबाइल थमा दिया जाता है। बाद में यही लत बन जाती है। यदि बच्चे को मोबाइल नहीं मिले, तो वह चिड़चिड़ा हो जाता है। रोने-चिल्लाने लगता है। इसलिए उसका स्क्रीन टाइम कम करके दूसरी चीजों में लगाएं। जैसे उसे लोरी सुनाएं। कहानी सुनाएं। गोद में लेकर खेलें।


विश्वास न्यूज के Health Explainer को विस्तार से नीचे क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
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