नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। कुंभ मेले के लिए 5,500 करोड़ रुपये की लागत वाली 167 प्रमुख विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए महाकुंभ 2025 को “एकता का महायज्ञ” करार दिया था, जो देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला आयोजन साबित होगा। उन्होंने कहा कि कुंभ न केवल सामाजिक सशक्तीकरण है, बल्कि यह लोगों को आर्थिक रूप से भी सशक्त करेगा।
इस लिहाज से देखा जाए तो महाकुंभ महज सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन तक सीमित नहीं, बल्कि इसका दायरा आर्थिक संदर्भ में भी उतना ही व्यापक और विस्तृत है। महाकुंभ मेला 45 दिनों तक सक्रिय रहने वाली एक छोटी अर्थव्यवस्था की तरह है। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुमान के मुताबिक, 13 जनवरी से 26 फरवरी के बीच महाकुंभ में करीब 40 करोड़ श्रद्धालुओं के भाग लेने का अनुमान है।
आयोजन की व्यापकता को देखते हुए महाकुंभ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने मेला क्षेत्र को राज्य का नया जिला घोषित किया है, जिसे महाकुंभ मेला जनपद के नाम से जाना जाएगा और इस जिले में प्रयागराज के तहसील सदर, सोरांव, फूलपुर और करछना को शामिल किया गया है।
महाकुंभ की अर्थव्यवस्था
उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ के आयोजन की तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी और इसके लिए सबसे पहले वित्त वर्ष 2022-23 में 621.5 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया गया था।
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए उत्तर प्रदेश का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा था, “महाकुंभ मेला, 2025 का भव्य आयोजन विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ किया जाना है”, जिसकी तैयारी शुरू कर दी गई है और वर्ष 2022-23 के 621.5 करोड़ रुपये के मुकाबले, आगामी बजट में 2,500 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने जहां इस बड़े आयोजन के लिए कुल 5600 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया है, वहीं केंद्र सरकार ने इसके लिए 2100 करोड़ रुपये का विशेष अनुदान दिया है। राज्य सरकार के बजटीय आवंटन और अनुदान की राशि को मिला कर देखें तो महाकुंभ 2025 पर करीब 7700 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च किए जाने का अनुमान है।
पॉप-अप इकोनॉमी
45 दिनों तक होने वाला यह आयोजन अपने आप में एक छोटी अर्थव्यवस्था की तरह है, जिसमें व्यापक तौर पर आर्थिक गतिविधियां होती हैं। आर्थिक संदर्भ में इसे ही पॉप-अप इकोनॉमी कहा जाता है।
इन्वेस्टोपीडिया की परिभाषा के मुताबिक, पॉप-अप का मतलब छोटी अवधि में सामने आने वाले खुदरा बिक्री केंद्र हैं, जो कुछ समय बाद अस्तित्व में नहीं रहते हैं।
डेलावेयर वैली रीजनल प्लानिंग कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, पॉप-अप इकोनॉमी को अगर एक शब्द में अभिव्यक्त किया जा सकता है, तो वह है, “अस्थायी”। रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के वर्षों में इस ट्रेंड में गति देखने को मिली है। पॉप-अप इकोनॉमी पॉप-अप दुकानें, पॉप-अप ईवेंट और/या पॉप-अप प्लानिंग में किसी एक रूप में सामने आती है।
निश्चित अवधि के भीतर इतने बड़े पैमाने पर राजस्व और राज्य की अर्थव्यवस्था में भारी योगदान की वजह से महाकुंभ मेले को पॉप-अप इकोनॉमी के तौर पर देखा जाता है।
ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अवनींद्र ठाकुर ने कहा, “जब कोई आयोजन होता है, जिसकी वजह से कुछ समय के लिए आर्थिक गतिविधियों में इजाफा होता है और मांग में वृद्धि होती है, तो इसे पॉप-अप इकोनॉमी कहा जाता है।” और महाकुंभ निश्चित तौर पर (प्रयागराज और उत्तर प्रदेश के लिए) इस श्रेणी में आता है। हालांकि, “इसका प्रभाव कितना व्यापक और कितने समय के लिए होगा, यह कई परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर कैपिटल फॉर्मेशन और अपॉर्चुनिटी कॉस्ट का है।”
2013 बनाम 2025 महाकुंभ
2013 के महाकुंभ मेला का आयोजन, प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में 14 जनवरी से 10 मार्च के बीच 55 दिनों के लिए हुआ था। इस आयोजन के लिए करीब 1,152 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, जिसमें से करीब 1,017 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए और करीब 135 करोड़ रुपये की राशि बची रह गई। कुल आवंटन के आधार पर देखें तो 2025 के महाकुंभ में 2013 के मुकाबले करीब छह गुना से अधिक राशि का आवंटन किया गया।
महाकुंभ मेला, 2013 की सीएजी ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने उस दौरान 800 करोड़ रुपये का विशेष अनुदान दिया था। रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 महाकुंभ में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 1,141.63 करोड़ रुपये और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 10.57 करोड़ रुपये रही। यानी महाकुंभ मेला आयोजन के लिए दी जाने वाली कुल राशि में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी करीब 99 फीसदी और राज्य सरकार की हिस्सेदारी एक फीसदी रही।
महाकुंभ मेले के लिए विभागवार स्वीकृत राशि, जारी रकम और खर्च के विवरण को निम्न चार्ट में देखा जा सकता है।
2025 महाकुंभ का आर्थिक प्रभाव
वहीं कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के मुताबिक, इस आयोजन से 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक के ट्रेड का अनुमान जताया है। सीएआईटी के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, “यह आयोजन न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी धार्मिक अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा केंद्र बनेगा।” साथ ही रेलवे, एयर ट्रांसपोर्ट और सड़क परिवहन क्षेत्र को भारी आमदनी होगी।
खंडेलवाल ने कहा, “एक अनुमान के मुताबिक, अगर प्रति व्यक्ति औसत खर्च 5,000 रुपये होता है, तो कुल खर्च दो लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा, जिसमें होटल, गेस्ट हाउस, अस्थायी निवास, खाना, धार्मिक सामग्री, स्वास्थ्य सेवा और अन्य सेवाओं पर होने वाला खर्च शामिल है।” बताते चलें कि प्रवीण खंडेलवाल दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद भी हैं।
2013 में मोतीलाल नेहरू नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के सनातन श्रीवास्तव और सैम हिगिनबॉटन इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज के अजीत कुमार राय ने कुंभ मेला के सामाजिक-आर्थिक आयाम पर विस्तृत रिपोर्ट लिखी थी, जिसे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मैनेजमेंट (आईजेएम) ने प्रकाशित किया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, “(कुंभ) मेला ने 6 लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार के मौके सृजित किए थे और उत्तर प्रदेश सरकार को इससे 12,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था।” रिपोर्ट बताती है कि कुंभ मेला हमेशा से ही बड़ा व्यावसायिक अवसर रहा है और 2013 के कुंभ में बड़ी कंपनियों ने आगे बढ़ते हुए अपने ब्रांड का प्रचार किया था, जिसमें वोडाफोन इंडिया (अब वोडाफोन आइडिया लिमिटेड), जीएसके कंज्यूमर हैल्थकेयर, ईमामी लिमिटेड, कोका कोला इंडिया जैसे बड़े ब्रांड शामिल थे।
बिजनेस और अर्थव्यवस्था से जुड़े अन्य मामलों की विस्तृत जानकारी प्रदान करती एक्सप्लेनर रिपोर्ट को विश्वास न्यूज के एक्सप्लेनर सेक्शन में पढ़ा जा सकता है।
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