नई दिल्ली (Vishvas News)। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) ने जहां दुनिया को नई तकनीकी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, वहीं कुछ लोग इसका गलत इस्तेमाल कर अपना फायदा साधने के लिए लोगों को धोखा दे रहे हैं और आम जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। खास तौर पर स्वास्थ्य सम्बन्धी फर्जी पोस्ट्स का इस्तेमाल कर न सिर्फ आम जनता से धोखाधड़ी करने की कोशिश की जा रही है, बल्कि उनके स्वास्थय को भी दांव पर लगाया जा रहा है। हाल ही में विश्वास न्यूज ने ऐसी कुछ पोस्ट्स की पड़तालों की, जिनमें AI और डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ऐसे विज़ुअल्स बनाये गए, जिनसे जनता भ्रमित हो। ऐस AI-जनित कंटेंट का इस्तेमाल करके नकली स्वास्थ्य उपचार और धोखाधड़ी उत्पादों का प्रचार करने की कोशिश की गयी।
सबसे पहले आपको बताते हैं पत्रकार राजत शर्मा और डॉ. रहील चौधरी के डीपफेक वीडियो के बारे में। सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में पत्रकार रजत शर्मा और नेत्र विशेषज्ञ डॉ. राहिल चौधरी आंखों की समस्याओं के इलाज के लिए दवा का प्रचार करते हुए दिखे। विश्वास न्यूज की जांच में पता चला कि वीडियो के ऑडियो को बदलकर उसे धोखाधड़ी के लिए तैयार किया गया था। रजत शर्मा और डॉ. राहिल चौधरी ने इसे झूठा बताते हुए स्पष्ट किया कि उनकी आवाज़ AI के इस्तेमाल से बनाई गई है और उन्होंने ऐसी किसी दवा का प्रचार नहीं किया है। दोनों ने लोगों से ऐसे फर्जी वीडियो पर विश्वास न करने की अपील की।
बताते चलें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक को तत्काल प्रभाव से इंडिया टीवी के चेयरमैन राजत शर्मा के सभी डीपफेक वीडियो, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक के माध्यम से बनाए गए हैं और फेसबुक पर पोस्ट किए गए हैं, को ब्लॉक/हटाने/निकालने का निर्देश दिया है। ये वीडियो डायबिटीज/प्रोस्टेटाइटिस/जोड़ों के दर्द का इलाज करने के लिए नकली दवाओं की बिक्री को बढ़ावा दे रहे हैं।
इसी तरह सोशल मीडिया पर और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें डॉ. नरेश त्रेहन को हाई ब्लड प्रेशर और दिल का दौरा रोकने के लिए दवा का प्रचार करते देखा जा सकता था। विश्वास न्यूज की जांच में पाया गया कि वीडियो के ऑडियो को बदलकर उसे धोखाधड़ी के लिए तैयार किया गया था। असली वीडियो में डॉ. त्रेहन मार्च 2020 में कोरोना वायरस से बचाव पर सलाह दे रहे थेऔर इसमें किसी भी दवा का प्रचार नहीं किया गया था। एआई डिटेक्शन टूल्स और एक्सपर्ट्स ने भी वीडियो में छेड़छाड़ की पुष्टि की। साथ ही, वीडियो के साथ एक फिशिंग लिंक भी शेयर किया जा रहा था।
इसी कड़ी में सोशल मीडिया पर ऐसा ही एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती, शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, अक्षय कुमार, योगी आदित्यनाथ, हेमा मालिनी और अमेरिकी सर्जन, लेखक और सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता अतुल गावंडे को डायबिटीज की दवा का प्रचार करते दिखाया गया। असल में यह एक एडिटेड वीडियो था।
विश्वास न्यूज की जांच में पाया गया कि इस वीडियो के सभी क्लिप्स को अलग-अलग जगहों से लिया गया था और उनके ऑडियो को डीपफेक तकनीक से बदला गया था। मिथुन चक्रवर्ती का वीडियो बीजेपी ज्वाइनिंग के बारे में था, शाहरुख खान का वीडियो वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट का था, ऐश्वर्या राय का वीडियो एक इंटरव्यू का था, अक्षय कुमार का वीडियो ‘सीधी बात’ शो का था, योगी आदित्यनाथ का वीडियो एबीपी चैनल के इंटरव्यू का था और डॉक्टर अतुल गावंडे का वीडियो बीबीसी रेडियो का था। किसी भी असली वीडियो में किसी दवा का प्रचार नहीं किया गया था। एआई विशेषज्ञों ने भी पुष्टि की कि वीडियो और ऑडियो में सामंजस्य नहीं था और यह वीडियो डीपफेक था।
इस विषय पर हमने मोतियाबिंद और रिफ्रैक्टिव सर्जन डॉ. राहिल चौधरी से बात की, जो खुद भी एक डीपफेक वीडियो का शिकार बन चुके हैं। उनका कहना था, “AI तकनीकें अत्यधिक विश्वसनीय, लेकिन झूठी सामग्री बनाकर चिकित्सा संबंधी गलत सूचनाओं को नया रूप दे रही हैं। इससे वैध स्वास्थ्य सलाह में लोगों का भरोसा खत्म होने का जोखिम है, जिससे उपचार में देरी हो रही है और वास्तविक चिकित्सा पेशेवरों के प्रति संदेह बढ़ रहा है। साथ ही, डीपफेक का दुरुपयोग न केवल व्यक्तिगत रोगियों को, बल्कि पूरे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचाता है। यह अविश्वास को बढ़ावा देता है, जिससे प्रामाणिक पेशेवरों के लिए अपने अभ्यास में विश्वास और पारदर्शिता बनाए रखना कठिन हो जाता है।”
उन्होंने कहा, “ऑनलाइन चिकित्सा सामग्री के लिए सख्त जांच होनी चाहिए। एक स्वास्थ्य सेवा पेशेवर के रूप में, मैं जनता से चिकित्सा जानकारी के स्रोतों के बारे में सतर्क रहने और स्वास्थ्य संबंधी सलाह पर कार्रवाई करने से पहले प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श करने का आग्रह करता हूं। साथ मिलकर, हम टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग का मुकाबला कर सकते हैं और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में विश्वास की रक्षा कर सकते हैं।”
सजा का प्रावधान
डीपफेक मामलों में सजा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66D के अंतर्गत मिलती है। इस धारा के तहत, ‘कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग करके धोखाधड़ी करने’ के लिए सजा का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति संचार उपकरणों या कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग करके धोखाधड़ी करता है, तो उसे तीन साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
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