हमारे यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाताओं को भगवान मानते हैं और सभी जानते हैं कि भगवान कभी किसी के साथ अन्याय नही करता है। आजादी के बाद से मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर अनेकों अप्रत्याशित एतिहासिक परिवर्तन कर अजेय को पराजय का मुंह दिखा चुकी है। मतदाता द्वारा समय समय पर लिये गये फैसलों से साबित कर दिया है कि वह किसी दल अथवा प्रत्याशी से जन्म जन्म का रिश्ता नहीं बनाती है और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए तवे की रोटी की तरह उलटती पलटती रहती है।
वैसे यहीं बात सोशलिस्ट पार्टी के डा० राम मनोहर लोहिया ने भी कही थी कि लोकतंत्र में किसी एक पार्टी के सत्ता में नहीं रहना चाहिए क्योंकि अधिक समय तक सत्ता में बने रहने निरंकुशता आ जाती है।जिस तरह तवे की रोटी को न पलटने से वह खाने योग्य नहीं रहती है और एक तरफा जलकर खराब हो जाती है उसी तरह लगातार सत्ता में रहने या भारी बहुमत से तानाशाही बढ़ती है जिससे लोकतंत्र कमजोर होता है।अभी दो दिन पहले गुजरात हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा तथा उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा विधानसभा उपचुनाव के साथ दिल्ली महानगर निगम चुनावों के परिणाम कुछ इसी तरह के चौंकाने वाले आये हैं।
सम्पन्न हुए चुनावों में मतदाता भगवान ने किसी को भी निराश या हतोत्साहित नहीं किया बल्कि सबका हौसला अफजाई कर नयी उर्जा भर दी हैं। गुजरात में भाजपा ने अबतक की सबसे बड़ी जीत हासिल कर सातवीं बार ऐतिहासिक जीत हासिल कर सत्ता से हटाकर कब्जा करने का दिवास्वप्न देखने वाली आप पार्टी को ठेंगा दिखा दिया है लेकिन उसे राष्ट्रीय दल जरूर बना दिया। गुजराती मतदाताओं ने एक बार फिर अपने गुजराती भाई नरेन्द्र मोदी के प्रति अपनी श्रद्धा आस्था दिखाते हुए उनके भाल को ऊंचा कर विरोधियों की जुबान को बन्द ही नहीं कर दिया है बल्कि उनका सूपड़ा ही साफ़ कर दिया है। वर्ष 1985 में कांग्रेस ने यहां पर सर्वाधिक 149 सीटें हासिल की थी लेकिन इस बार मतदाताओं ने उसके पिछले रिकार्ड एवं भाजपा के 150 सीटों वाले लक्ष्य को तोड़ते हुए 180 में से 156 सीटें उसकी झोली में डाल कर नया इतिहास रच दिया है।
2002 के चुनाव में भाजपा को यहां पर सबसे ज्यादा सीटें मिली थी उस वक्त राज्य की कमान मोदी जी के हाथ थी। इस चुनाव में कांग्रेस को मात्र 17 सीटें ही मिली हैं जबकि सरकार बनाने का दावा करने वाली आप पार्टी को सिर्फ और सिर्फ पांच सीट से ही संतोष करना पड़ा है। न तो गुजरात ने अपनी परम्परा बदली और न ही हिमाचल प्रदेश ने अपना इतिहास भूगोल ही बदला।हिमाचल प्रदेश की परम्परा हर पांच साल बाद सरकार बदलने वाली रही है और इस बार भी उसने भाजपा को सत्ताच्युत कर कांग्रेस को सत्ता में ले आई है।
यहां पर लड़ाई बहुत कठिन थी और मात्र एक प्रतिशत से भी कम अन्तराल से कांग्रेस को 68 सीटों में से 40 सीटें मिली हैं जबकि भाजपा 25 सीटों पर ही अपना परचम लहरा सकी है। हिमाचल में भाजपा की हार के पीछे पार्टी की बगावत एवं भितरघात मानी जा रही है। गुजरात ने भाजपा हिमाचल ने कांग्रेस और दिल्ली के मतदाताओं ने आप पार्टी को दिल्ली के चुनावों में बहुमत देकर तीनों को खुश कर दिया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में सम्पन्न उपचुनावों में मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी को दो सीटें देकर चाचा भतीजे की दूरियों को ही नहीं खत्म कर दिया है बल्कि नयी उर्जा भर दी है। सपा के संस्थापक नेताजी जी मुलायम सिंह यादव की मौत से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट भाजपा की लाख किलेबंदी के बावजूद उनकी बहू की झोली में चली गई है और वह पौने तीन लाख से भी ज्यादा मतों से चुनाव जीत गई हैं।
इसी तरह खतौली विधानसभा सीट सपा गठबंधन ने भाजपा से छीन ली है जबकि भाजपा ने सपा की अजेय मानी जाने वाली मुस्लिम बाहुल्य रामपुर सीट सपा से छीन ली है। रामपुर के चुनाव परिणाम से यह साबित हो गया है कि मुस्लिमों के लिए भाजपा भी अछूत नहीं रह गई है और उसके पक्ष में मतदान करने में कोई संकोच नहीं है। गुजरात हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा, उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों तथा दिल्ली चुनावों को राजनैतिक पंडित आगामी लोकसभा चुनाव का ट्रायल मान कर असिसमेंट कर रहे हैं।इन चुनाव परिणामों से मृतप्राय बनी कांग्रेस में एक फिर जान आ गई है और सपा का मनोबल ऊंचा हो गया है।इन परिणामों ने अखिलेश यादव व चाचा शिवपाल यादव के बीच खाई को पाटकर दो दुश्मनों को जिगरी दोस्त बना दिया है। अगर यही दोस्ती मुलायम सिंह यादव के सामने हो गई होती तो उनकी जान सुकून से निकल जाती लेकिन जो कार्य जिंदा रहते नहीं हो सका वह उनके मरने के बाद हो गया है।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी
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