“यह काम करने की तुम्हारी कोई उम्र है क्या?” 60 साल की उम्र के बाद जो लोग कुछ अलग करने की सोचते हैं, उन्हें सबसे यही बात सुनने को मिलती है। लोगों ने हमेशा से अपने सपनों पर समय की सीमा और लक्ष्यों पर उम्र का बंधन लगाकर रखा है। लेकिन, यह एक ऐसी बुज़ुर्ग महिला की कहानी है, जो दुनिया से अलग हैं, उनका नाम है – पुष्पा केया भट्ट, जो एक मैराथन रनर हैं।
मुंबई की रहने वालीं 66 साल की पुष्पा द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताती हैं, “मैं हफ़्ते में 17 से 20 घंटे वर्कआउट करती हूं।” पुष्पा के लिए यह कड़ी ट्रेनिंग काफ़ी ज़रूरी है, क्योंकि वह कई मैराथन में हिस्सा लेती रहती हैं और अब तक वह नौ अल्ट्रा-मैराथन और ग्यारह फुल मैराथन दौड़ चुकी हैं। इतना कुछ हासिल करने के बावजूद, पुष्पा का यह सफ़र आसान नहीं रहा है।
सफलता के इस रास्ते में कई चुनौतियां आईं, लेकिन वह कभी इनसे डरी नहीं और डटकर सामना किया।
बीमारियों और स्ट्रेस को दूर करने के लिए उठाया कदम
कभी एचआर प्रोफेशनल के तौर पर काम कर चुकीं पुष्पा कहती हैं, “तीन साल की बेटी की सिंगल मदर होने के नाते मुझे उस समय हमेशा यह चिंता रहती थी कि जब मैं नहीं रहूंगी, तो वह अपना ख़्याल कैसे रखेगी।” कॉर्पोरेट जॉब की मुश्किलें और ऊपर से बढ़ती उम्र के कारण उनके लिए चीज़ें आसान नहीं थीं।
वह बताती हैं, “दिन भर बैठे रहने की जॉब और स्ट्रेस भरी लाइफस्टाइल का मेरे शरीर पर बुरा असर पड़ा और मुझे पीठ और घुटनों में दिक्क़तें होने लगीं और फिर इन दर्दों के कारण और भी टेंशन होने लगी।” लेकिन फिर एक दिन उन्होंने फ़ैसला किया कि केवल टेंशन लेकर कुछ नहीं होने वाला, सेहत ठीक रखनी है तो इसके लिए कुछ करना भी पड़ेगा।
तभी पुष्पा ने मुंबई में स्टैंडर्ड चार्टर्ड (अब टाटा मुंबई मैराथन) द्वारा आयोजित की जा रही 7 किलोमीटर की ‘ड्रीम रन’ के बारे में सुना और वह कहती हैं कि उनको लगा था कि यह इतना मुश्किल नहीं होगा।
वह आगे कहती हैं, “15 मिनट तक दौड़ने के बाद ही मुझे एहसास हो गया कि मैराथन दौड़ना कोई आसान काम नहीं है।” वह बताती हैं कि उन्हें यह भी नहीं पता था कि मैराथन में कोई अपनी मर्ज़ी से धीमे या तेज़ दौड़ सकता है और पूरी दूरी तक दौड़ने की भी ज़रूरत नहीं है।
पुष्पा ने उस मैराथन के बाद, खुद को बेहतर बनाने के लिए रोज़ाना कुछ दूर दौड़ना शुरू किया, ताकि उनका स्टैमिना भी बढ़े।
मैराथन दौड़ने वाली पुष्पा ने 46 की उम्र में शुरू की थी फिज़िकल ट्रेनिंग
कई दिनों की प्रैक्टिस के बाद, उस समय 47 साल की रहीं पुष्पा एक मैराथन में लगातार एक घंटे तक दौड़ सकीं। वह याद करते हुए कहती हैं कि उसके बाद की फीलिंग बहुत अच्छी थी।
पुष्पा किसी भी काम को नामुमकिन नहीं मानती हैं। उन्होंने उस उम्र में चीज़ें हासिल कीं हैं, जब लोग रिटायर होते हैं और फिर खुद को किसी क़ाबिल नहीं समझते।
वह बताती हैं, “46 साल की उम्र में मैंने जिम करना शुरू किया और 60 साल में साइकिलिंग सीखी। 64 साल की उम्र में, मैंने अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन से न्यूट्रिशन में एक कोर्स पूरा किया। 2020 में मैंने पाइलेट्स और योगा शुरू किया, और लॉकडाउन के दौरान ही मनाली में क्लिनिकल न्यूट्रिशन कोर्स पूरा किया, जिससे मैंने मेडिकल न्यूट्रिशन के बारे में सीखा।”
पुष्पा ने जिन चैलेंजेज़ में हिस्सा लिया है उनमें 72 किलोमीटर की खारदुंग ला हाई एल्टीट्यूड चैलेंज और द बर्लिन मेजर (2019) के अलावा, द टाटा मुंबई मैराथन शामिल हैं, जिनमें उनके पास चार आयु वर्ग के पोडियम हैं। इनके अलावा, लगातार पांच सालों तक द सातारा हिल हाफ मैराथन में उनके पास चार आयु वर्ग के पोडियम हैं और न्यूयॉर्क में द वर्ल्ड मेजर्स (2018) में भी वह भाग ले चुकी हैं।
क्या इस उम्र में मैराथन जैसी उपलब्धि हासिल करना आसान था?
पुष्पा हंसते हुए कहती हैं – “बिल्कुल नहीं, अकसर लोग केवल सक्सेस देखते हैं। लेकिन इस सफलता के पीछे बहुत ज़्यादा मेहनत होती है। मैं अपनी मसल्स को बनाने के लिए बहुत कम कार्ब्स लेती हूँ। यह आसान नहीं होता। मेरा यह मानना है कि जब आप यंग हैं, आपके पास तभी वक़्त है, तो अपनी सेहत के लिए खूब मेहनत करें और जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती रहे, तब और भी ज़्यादा मेहनत करनी चाहिए।”
अपनी कमियों से सीखते रहना बहुत ज़रूरी है, ऐसी ही एक घटना को याद करते हुए वह बताती हैं कि 2019 के खारदुंग ला मैराथन के दौरान, वह चौदह घंटे के कटऑफ में चार मिनट पूरे करने से चूक गई थीं। इसे उन्होंने एक चैलेंज की तरह लिया और काफ़ी तैयारी की।
वह बताती हैं, “इस साल मैं 72 किमी के चैलेंज में फिर से दौड़ी और इसे चार मिनट पहले पूरा किया और एज कैटेगरी में ब्रॉन्ज़ मेडल जीती। मुझे वहाँ का सीन याद है – लेह के मार्केट्स में 500 लोग खड़े थे और मेरा नाम चिल्ला रहे थे। लोगों की आवाज़ से पूरा बाज़ार गूंज रहा था, जिससे मुझे बहुत मोटिवेशन मिला। यह घटना मेरी ज़िंदगी की सबसे अच्छी यादों में से एक है।”
आज पुष्पा, खारदुंग ला 72 किलोमीटर चैलेंज को पूरा करने वाले सबसे उम्रदराज़ लोगों में से एक हैं।
कहाँ से मिलता है मैराथन में दौड़ने का मोटिवेशन?
एक चीज़ जिससे 66 की उम्र में भी पुष्पा का जज़्बा क़ायम है, वह यह है कि रनिंग करना उन्हें बहुत पसंद है और इससे उन्हें खुशी मिलती है।
पुष्पा ने कहा, “भीड़ में खड़े लोग जब मुझे सपोर्ट करते हैं, तो उनकी एनर्जी से मुझे बहुत मोटिवेशन मिलता है, इससे अच्छा और कुछ भी नहीं है। मेरे पहले मैराथन की यादें मैं कभी भूल नहीं सकती और यह मुझे हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा। अगर मैं कर सकती हूँ, तो यक़ीन मानिए कोई भी यह काम कर सकता है।”
ख़ास करके सीनियर सिटिज़न्स के लिए पुष्पा सात टिप्स शेयर करतीं हैं, जो उन्हें इस उम्र में भी आगे बढ़ने में मदद करेंगी।
अच्छी नींद है ज़रूरी
मैराथन में भाग लेने वाली 66 साल की पुष्पा सलाह देते हुए कहती हैं, “अपनी स्लीप साइकिल को सही रखें। कोशिश करें कि आप रात में 11 बजे सोकर सुबह 7 बजे उठ जाएं।” हर दिन एक फिक्स्ड टाइम पर सोना और जागना बहुत ज़रूरी है।
धूप से रहेंगे एनर्जेटिक
काफ़ी सालों से पुष्पा उठने के बाद सबसे पहले थोड़ी देर सुबह की धूप में वक़्त गुज़ारती हैं। वह मानती हैं, “ऐसा करने से आपको पूरे दिन के लिए एनर्जी मिलती है।”
बेहद ज़रूरी है एक्सरसाइज़
वह कहती हैं, “वॉक करना तो अच्छा है ही, लेकिन साथ ही एक्सरसाइज़ करना भी बहुत ज़रूरी है। हफ़्ते में पांच से छह बार वर्कआउट ज़रूर करें, ताकि आपके मसल्स, बोन्स और बॉडी मजबूत बने रहें।”
चाय/कॉफ़ी से दिन की शुरुआत न करें
वह कहती हैं, “सुबह-सुबह चाय या कॉफ़ी के बजाय गर्म पानी पिएं और फिर देखिएगा कि यह आदत आपके लिए कितनी फायदेमंद साबित होगी।”
जंक फ़ूड से रहें दूर
पुष्पा सलाह देते हुए कहती हैं, “ज़्यादातर घर का बना खाना खाएं। अगर आप हफ़्ते में पांच दिन बाहर से खाना ऑर्डर करते हैं, तो इसे कम करके केवल दो दिन करें। जितना कम हो सके, उतना कम जंक फ़ूड खाएं।”
‘मी टाइम’ से भी अच्छी रहेगी सेहत
पुष्पा कहती हैं, “दिन के अंत में, थोड़ा टाइम अपने लिए निकालें और हर चीज़ को दूर रखकर कुछ ऐसा काम करें, जो आपको पसंद है और जिससे आपको सुकून मिलता है।” वह बताती हैं कि वह समय निकालकर पॉडकास्ट्स सुनती हैं।
“आप शॉवर लीजिए, वॉक पर जाइए, सनसेट देखिए, या कुछ भी ऐसा करिए जिससे आपके मन को शांति मिले।” क्योंकि मन शांत होगा, तो शरीर भी स्वस्थ रहेगा।
60 के बाद ख़त्म नहीं होती ज़िंदगी: मैराथन रनर पुष्पा
पुष्पा का कहना है कि अक्सर सीनियर सिटिज़न्स को यह बताया जाता है कि उन्होंने जीवन में बहुत मेहनत की है और 60 की उम्र के बाद उन्हें आराम करना चाहिए। “मैं आज भी एक नहीं, बल्कि दो काम करके पैसे कमा रही हूं। मैं घर में नहीं बैठती, हर दिन बाहर जाकर काम करती हूँ।”
वह आगे बताती हैं कि केवल उम्र से जुड़े नियम ही नहीं, बल्कि समाज के और भी स्टीरियोटाइप हैं जिन्हें उन्होंने तोड़ा है। हमारी सोसाइटी में जहाँ ऐसा नियम है कि महिलाएं अपने पति का नाम अपने नाम के साथ जोड़ती हैं, वहीं पुष्पा केया भट्ट ने अपना मिडिल नेम अपनी बेटी के नाम पर रखा है।
वह कहती हैं, “महिलाओं को पीछे हटकर अपनी ज़िंदगी की डोर किसी और के हाथ में देने की ज़रुरत नहीं है। आप आगे आइए और खुद को अपनी प्राथमिकता बनाइए।”
फिलहाल पुष्पा, दिसंबर में जैसलमेर में होने वाले ‘बॉर्डर 100 किमी’ और उसके बाद टाटा मैराथन, नई दिल्ली मैराथन और टाटा अल्ट्रा मैराथन की तैयारी कर रही हैं।
उनका कहना है, “अपना लक्ष्य तय करें, उसे पूरा करने का जुनून रखें और अपना हर सपना साकार करें।”
मूल लेख – क्रिस्टल डीसूज़ा
संपादन – अर्चना दुबे
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