गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश) की रहनेवाली कनक सक्सेना हैं तो 90 साल की, लेकिन उनका जज़्बा और फुर्ती किसी युवा से कम नहीं। वह हर रोज़ सुबह उठती हैं और सीधा अपने घर की रसोई में जाती हैं, जहां वह न केवल अपने परिवार के लिए बल्कि 120 स्ट्रीट डॉग्स के लिए भी खाना बनाती हैं। कनक, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारी से पीड़ित हैं और उनकी कई बड़ी सर्जरी भी हो चुकी है, लेकिन उन्होंने इन परेशानियों को अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में बाधा नहीं बनने दिया।
वह कहती हैं कि इन कुत्तों को खिलाने से उन्हें जो खुशी और प्यार मिलता है, वही उनके स्वास्थ्य और सेहत का राज़ है। हालांकि ऐसा नहीं है कि उन्हें हमेशा से कुत्तों से लगाव रहा है। लेकिन जब उनकी पोती सना एक कुत्ते ‘कोको’ को घर ले आई, तो सब कुछ बदल गया।
कनक कहती हैं, “मुझे पहले कुत्तों से लगाव नहीं था। लेकिन सना जब एक कुत्ते को घर ले आई, तो मुझे धीरे-धीरे उससे लगाव होने लगा। मेरा दिन उसे खिलाने, उसके साथ खेलने और बस उसे प्यार करने में बीतने लगा। कुत्तों के प्रति मेरा नज़रिया पूरी तरह बदल गया। इसलिए जब सना ने गली के कुत्तों की देखभाल करना शुरू किया, तो मैं उसकी मदद करना चाहती थी। चूंकि मैं शारीरिक रूप से जाकर उन्हें खाना नहीं खिला सकती, इसलिए मैं उनके लिए खाना बनाकर संतुष्ट महसूस करती हूं।”
पहले सना और उनके पिता कभी कभार गली के कुत्तों को बिस्किट और खाना खिलाने जाते थे। लेकिन, महामारी की दस्तक और एक कुत्ते की मौत ने उनके जीवन को बदल दिया।
एक कुत्ते की मौत ने सोचने पर किया मजबूर

फैशन डिज़ाइनिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ रहीं 22 वर्षीया सना कहती हैं, ”हमारे घर के पास भोलू नाम का एक कुत्ता था। हम उसे कभी-कभार खाना खिलाते थे। उसकी मृत्यु ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मुझे लगा कि बीमार स्ट्रीट डॉग्स को कैसे पहचानना है, इसके बारे में मुझे थोड़ा पता होता, तो मैं उसकी मदद कर पाती। उसी समय पहला लॉकडाउन लगा था। मेरे पिताजी और मैंने सोचा कि ये कुत्ते कैसे खाएंगे। चूंकि हम जानते थे कि लोग बाहर नहीं निकल सकते, इसलिए हमने जानवरों की मदद करने का फैसला किया।”
मार्च 2020 में, परिवार ने गाज़ियाबाद के वैशाली में एक सड़क पर 10-20 कुत्तों को खाना खिलाना शुरू किया। आज यह संख्या बढ़कर 120 हो गई है। खाना के अलावा, यह परिवार इन कुत्तों के टीकाकरण, दवाओं और आश्रय का भी ध्यान रख रहा है। शुरुआत में पिता-बेटी की जोड़ी पैकेज्ड फूड लाते और कुत्तों को खिलाते थे। लेकिन फिर कनक भी इनके साथ जुड़ गईं और कुत्तों को ताजा खाना देने के लिए कहा।
दादी के इस काम में जुड़ने के बारे में बात करते हुए सना कहती हैं, “यह देखना बहुत मज़ेदार है कि कैसे मेरी दादी, जिन्हें कुत्तों से कई लगाव नहीं था, वह पूरी तरह से एक डॉग लवर बन गई हैं और अब वह मेरे फोन पर उनके वीडियो देखे बिना सो नहीं सकतीं। वह हमारे घर में कोको को भी सबसे ज्यादा प्यार करती हैं। हम गली के कुत्तों को कुछ पैकेटबंद खाना दे रहे थे, लेकिन दादी और माँ उन्हें ताज़ा खाना देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने घर पर खाना बनाना शुरू कर दिया।”
पिता को खोने के बाद भी सना ने जारी रखा स्ट्रीट डॉग्स को खिलाना
कनक रोज़ाना चिकन के साथ करीब 10 किलो चावल बनाती हैं और उन्हें खाने के साथ एक्सपेरिमेंट करना भी पसंद है। सना कहती हैं, “दादी नए एक्सपेरिमेंट करती रहती हैं। हमें एक मीट की दुकान से थोक में चटन मिलता है, जो चिकन का हिस्सा होता है। वह इसके साथ चिकन बिरयानी बनाती हैं और कई बार वह सोया चंक्स, या पनीर, या सब्जियों के टुकड़े डालकर भी बनाती हैं। वह दूध और चावल का उपयोग करके व्यंजन भी बनाती हैं।”
यह परिवार प्रति कुत्ते हर महीने करीब 350 रुपये का खर्च करता है, यानि 120 कुत्तों के लिए कुल 42,000 रुपये खर्च होते हैं। इस काम के लिए वे फंड जुटाते हैं।
सना सुनिश्चित करती हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, कुत्तों को साल में 365 दिन खाना खिलाया जाए। अगर वह बाहर हैं, तो उनकी मां खाने का ख्याल रखती हैं। जब सना ने पिछले साल COVID के कारण अपने पिता को खो दिया, तो भी उन्होंने कुत्तों को खाना खिलाना जारी रखा, क्योंकि उनके पिता की भी यही इच्छा थी।

इस परिवार की मदद से 13 स्ट्रीट डॉग्स को लिया गया गोद
सना की दादी, कनक 4.30 बजे उठकर खाना बनाना शुरू करती हैं, वहीं सना और उनकी मां सुबह 5 बजे उठ जाती हैं। वे सभी कुत्तों के लिए अलग-अलग पैकेट बनाना शुरू करते हैं। वह हमेशा अपने साथ ज्यादा खाना ले जाती हैं, ताकि रास्ते में मिले कुत्तों को भी खाना खिला सकें।
सुबह 6.30 बजे सना, उनकी मां और दो अन्य दोस्त बाहर निकल जाते हैं। वे इस भोजन को वैशाली में तीन सेक्टरों में बांटते हैं और सुबह साढ़े आठ बजे तक घर लौट आते हैं। कनक कहती हैं, “मैं इन कुत्तों के लिए बहुत प्यार महसूस करती हूँ। जब उन्हें अच्छा भोजन मिलता है, तो मैं संतुष्ट और खुश महसूस करती हूं। हम किसी अच्छे उद्देश्य में योगदान दे रहे हैं। नहीं तो इन बेचारे जानवरों की देखभाल कौन करेगा? आदर्श रूप से, मैं उन्हें खुद खाना खिलाना पसंद करूंगी, लेकिन मैं अब उनके वीडियो देखकर ही खुश हो लेती हूं।”
कुत्तों को खाना खिलाने से शुरू हुआ यह कारवां, अब धीरे-धीरे टीकाकरण, अस्थायी आश्रयों के निर्माण, गोद लेने और बचाव कार्यों की ओर बढ़ रहा है। सना सुनिश्चित करती हैं कि उनके क्षेत्र के सभी कुत्तों का टीकाकरण हो।
वह कहती हैं, “हमें साल में दो बार कुत्तों को टीका लगाने की ज़रूरत है। हर कुत्ते को टीका लगवाने में 5-6 दिन लगते हैं। मैंने उनका टीकाकरण भी सीखा है। हमने मानसून के दौरान कुत्तों के लिए कुछ अस्थायी आश्रय बनाए। हमने 13 कुत्तों को गोद लेने में भी मदद की है।”
Paws In Puddle के ज़रिए लोगों को कर रहीं जागरूक
सना, इंस्टाग्राम पर Paws in Puddle नाम से एक पेज भी चलाती हैं, जिसका इस्तेमाल वह लोगों को स्ट्रीट डॉग्स के बारे में जानकारी देने और गोद लेने को प्रोत्साहित करने के लिए करती हैं।
सना का मानना है कि कुत्तों को खिलाना शुरू करने के बाद परिवार ने करुणा सीखी है, अगर लोग एक या दो कुत्तों को भी खिलाना शुरू कर दें, तो ज्यादातर गली के कुत्तों का ध्यान रखा जा सकेगा।
वह कहती हैं कि उन्होंने पिछले दो सालों में बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने बताया, “मैंने कुत्तों के लिए दवाओं के बारे में सीखा और हर समय अपने साथ एक किट रखती हूं। अगर मैं किसी कुत्ते को मुसीबत में देखती हूं, तो मैं हमेशा उनकी मदद करती हूं। हम जागरूकता फैलाने और लोगों को उनके प्रति दयालु और संवेदनशील बनाने की कोशिश करते हैं।”
सना कहती हैं कि उनके दिन का सबसे अच्छा हिस्सा रात में दादी के साथ बैठना और कुत्तों के साथ जो हुआ उसे साझा करना है। दादी उन्हें अच्छी तरह से खिलाते हुए देखना पसंद करती हैं और जब वह परेशान कुत्तों के बारे में सुनती हैं, तो रोने लगती हैं और सना से उन्हें बचाने को कहती हैं।
मूल लेखः सौम्या मणि
संपादनः अर्चना दुबे
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