40 वर्षीय मार्केटिंग प्रोफेशनल कार्तिक रामराज करीब एक दशक से न्यूज़ीलैंड में रह रहे थे। वहां उन्होंने मसानोबु फुकुओका की किताब ‘द वन स्ट्रॉ रेवोल्यूशन’ पढ़ी। किताब पढ़ने के बाद, उन्हें यह समझ में आया कि खेती मतलब क्या है? कैसे पृथ्वी और मनुष्य के बीच संतुलन बिगड़ता है और कैसे मनुष्य अपनी जड़ों को वापस प्रकृति में खोज सकते हैं?
इन पहलुओं के बारे में जान-समझकर कार्तिक काफी उत्साहित हुए। उन्होंने अपनी क्रिसमस की छुट्टियां न्यूजीलैंड के एक खेत में काम करने में बिताने का फैसला किया। वहां उन्हें शतावरी की छंटाई करना था, सेब के बागों में काम में हाथ बंटाना और बाग का निरीक्षण करना था। इन कामों से वे समझना चाहते थे कि आखिर किसानों का जीवन वास्तव में कैसा होता है?
इस तरह के जीवनशैली के बारे में जानकर वह इतने भावुक हो गए कि वह इसका पूरी तरह से अनुभव लेना चाहते थे। द बेटर इंडिया के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, “यह प्रभावों की एक सीरीज़ थी, जिसने 2009 में मुझे भारत वापस जाने के लिए प्रेरित किया।”
वह कहते हैं, इसके पीछे उनका मकसद प्रकृति के करीब और शहर की हलचल से दूर जीवन की तलाश करना है।
खेती में केमिकल के इस्तेमाल को बंद करने का फैसला
भारत लौटने पर, कार्तिक ने अपने खेत में खेती करने के सपने को पूरा करने का फैसला किया और अगले दो महीनों के भीतर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के बंगारुपलेम मंडल में 50 एकड़ ज़मीन खरीदी। उनके साथ उनकी पत्नी निकिता डावर भी थीं। बेंगलुरू के इस कपल ने उसी ज़मीन पर ‘वेलंगा ऑर्चड’ नाम के फार्म स्टे की शुरुआत की।
यहां आने वाले मेहमान प्रकृति की सुंदरता और आम के पेड़ों के बीच, शुद्ध हवा में सांस लेने का आनंद तो लेते ही हैं, साथ ही कई दूसरी एक्टिविटीज़ का मज़ा भी ले सकते हैं। कार्तिक और निकिता का कहना है कि वेलंगा ऑर्चर्ड ने साल दर साल, यहां विकास होते देखा है, वह गवाह है यहां के डेवलपमेंट का।
कार्तिक बताते हैं कि जब उन्होंने पहली बार इस संपत्ति को देखा और 2009 में इसे खरीदा, तो यह लगभग एक बंजर ज़मीन की तरह थी, जिसमें आम के पेड़ थे। लेकिन यहां पेड़ों की मौजूदगी के बावजूद, खेत में केमिकल का इस्तेमाल किया जाता था। कार्तिक कहते हैं, “हमने इसे बदलने का फैसला किया और एक ऐसी जगह की कल्पना की, जहां प्रकृति व्यवस्थित रूप से विकसित हो और जहां लोग इसकी सुंदरता का आनंद ले सकें।”
इसीलिए इस दंपति ने 50 में से 30 एकड़ ज़मीन को खेती करने के लिए अलग रखा और तय किया कि फसलों के लिए ऑर्गेनिक खाद, गोबर आदि का ही उपयोग करेंगे।
क्या-क्या कर सकते हैं यहां?
निकिता बताती हैं कि आम के पेड़ों के अलावा, उन्होंने उस ज़मीन पर नारियल के पेड़ लगाए, ताकि धान उगाया जा सके। साल 2020 में उन्होंने इसे एक फार्म स्टे के रूप में खोलने का फैसला किया, जिसमें तीन ट्विन शेयरिंग कॉटेज और चार अलग-अलग कॉटेज शामिल थे। कॉटेज में रसोई घर, मिनी-फ्रिज, इंडक्शन प्लेट और बुनियादी बर्तन उपलब्ध हैं।
उसी साल, उन्होंने साइट पर निकिता के स्टूडियो स्लो पॉटरी में मिट्टी के बर्तनों बनाने का एक कोर्स भी शुरू किया, जहां छात्र, उनके साथ रहते हुए यह कला सीख सकते हैं। आज इस जगह को देखकर इन दोनों को काफी खुशी होती है। वह बताते हैं, “जब हमने ज़मीन खरीदी, तो बिजली और अन्य सुविधाएं नहीं थी और सब कुछ एकदम शुरुआत से करना पड़ता था। हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। ”
निकिता कहती हैं कि कुछ सीखने और सुकून की तलाश में यहां आन वालों को किसी भी चीज़ की कभी कमी नहीं होती है। वह बताती हैं, “यहां एक झील है, जो कयाकिंग और तैराकी के लिए एकदम सही है और पास की पहाड़ी, हाइकर्स के लिए एक अच्छी जगह है।”
रोमांचक दिन बिताना हो या आराम करना, सबके लिए कुछ न कुछ है यहां
यहां आने वाले कुछ मेहमानों को रोमांच भरी छुट्टी पसंद है, तो वहीं कुछ को यहां आकर केवल आराम करना पसंद है। वेलंगा में सबके लिए कुछ न कुछ है।
निकिता बताती हैं कि आस-पास के गांवों में देखने के लिए बहुत कुछ है और मेहमान गांवों तक घूम सकते हैं। वह बताती हैं, “फार्म में, खूबसूरत पक्षियों और रेपटाइल्स की कई प्रजातियां देखने को मिलती हैं और कोई भी, बड़ी आसानी से उन्हें देखते हुए पूरा दिन बिता सकता है।”
वैसे भी दिन भर की लंबी पैदल यात्रा और रोमांच के बाद, फार्मस्टे में दावत के लिए अच्छा खाना भी मिलता है। यहां की एक और खासियत यह है कि यहां आने वाले मेहमान न केवल वेलंगा बाग में व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं, बल्कि खुद खाना बना भी सकते हैं!
निकिता कहती हैं, “हमारे मेहमान इसका भरपूर मजा लेते हैं। उन्हें यह देखने का मौका मिलता है कि उनका भोजन कैसे और कहाँ से आता है। इसके अलावा, उन्हें ये देखने का भी मौका मिलता है कि प्रकृति उन्हें कितना कुछ देती है।”
वह आगे कहती हैं कि भोजन की 40 प्रतिशत जरूरतें बाग, धान के खेत और सब्जी के खेत से पूरी होती हैं और अक्सर वेलंगा में दोपहर के भोजन में ऐसे व्यंजन मिलते हैं, जिनमें ताजा बैंगन, करेला, पालक, टमाटर, मिर्च, मूली, चावल, बाजरा, आदि शामिल होते हैं।
सोलर पैनल से बिजली की ज़रूरतें होती हैं पूरी
कार्तिक और निकिता एक फ्रूट फॉरेस्ट शुरू करने के काम में लगे हैं, जिसमें 20 से अधिक फलों के पेड़ होंगे और जिनके फल मेन्यू में भी शामिल होंगे।
निकिता कहती हैं, यहां आने वाले मेहमान आस-पास के वातावरण में घूम सकते हैं, आराम कर सकते हैं, मिट्टी के बर्तनों के स्टूडियो में आ सकते हैं और शुद्ध हवा और साफ आसमान के साथ प्रकृति का आनंद ले सकते हैं। वह कहती हैं, “अगर मेहमान प्यासे हैं, तो हमेशा यहां एक गिलास ताज़ा ताड़ी जूस उपलब्ध होता है।” हालांकि मेहमानों को जो चीज़ सबसे ज्यादा पसंद है, वह है फार्म स्टे में रुककर पुरानी ज़माने की जीवनशैली का आनंद लेना।
इन सबके बीच कार्तिक कहते हैं कि उनके लिए प्रकृति के मूल्यों को समाहित कर फार्मस्टे को बनाए रखना बेहद ज़रूरी हो गया है। वह कहते हैं, “घर के भीतर हमारे ज्यादातर ढांचे और अंदरूनी हिस्से को रिसायकल और अपसायकल की गई चीज़ों के साथ बनाया गया है। जैसे कि छत की टाइलें ढहाए गए गाँव के घरों से मंगवाई जाती हैं।” इसके अलावा, फर्नीचर को भी पुराने लकड़ी के सामानों से बनाया गया है।
फार्म स्टे की बिजली की ज़रूरतों को 10W के 10 सोलर पैनलों से पूरा किया जाता है। कार्तिक का कहना है कि उनका लक्ष्य 2024 तक बिजली की 100 प्रतिशत ज़रूरतों को सोलर पावर से ही पूरा करना है।
हालांकि, फार्मस्टे की ज्यादातर ज़रूरतों का ख्याल कार्तिक और निकिता रखते हैं, लेकिन छोटे-मोटे कामों में हाथ बंटाने के लिए उनके साथ रवि हैं। इसके अलावा, उनके साथ आसपास के गांवों की चार महिलाएं हैं, जो खाना पकाने और हाउसकीपिंग में मदद करती हैं।
किन मुश्किलों का करना पड़ा सामना
कार्तिक और निकिता के लिए ये सबकुछ कर पाना आसान नहीं था। उनके रास्ते में कई चुनौतियां भी आईं। फार्म स्टे शुरू करते समय उनके सामने सबसे पहली चुनौती, सांस्कृतिक भिन्नता थी। निकिता कहती हैं, “आस-पड़ोस के गांवों में लोगों को समझ ही नहीं आ रहा था कि कोई ऐसी जगह कैसे बना सकता है, जहां प्रकृति और इंसान, एक साथ ताल-मेल बैठाकर रह सकें।”
वह आगे कहती हैं कि इसके साथ ही वह जगह इतनी दूर थी कि छोटे से छोटे काम को भी करना बड़ी चुनौती थी, क्योंकि पास में काम करने वाले लोग और चीज़ें मिलती ही नहीं थी। मुसीबतें इतनी ही नहीं थी, 2013 में जैसे ही कार्तिक और निकिता, खेत तैयार करने में जुटे थे और काफी भाग-दौड़ कर रहे थे, उसी साल वहां भीषण सूखा पड़ा और उनके पास पानी खत्म हो गया।
कार्तिक कहते हैं, ”उस दौरान हमें जिन भी चीज़ों पर भरोसा था, हर वह चीज़ हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ी थी।” लेकिन उन्होनें हार नहीं मानी। जलवायु परिवर्तन तो अब भी उनके लिए एक चुनौती बना हुआ है और वे इसका समाधान भी ढूंढने में लगे हैं।
फार्म में आने वाले मेहमानों के अलावा, यहां कुछ छात्र आकर रहते हैं, जो निकिता के स्टूडियो में मिट्टी के बर्तन बनाना सीखते हैं। छात्र 1 लाख रुपये फीस देकर एक महीने के लिए स्लो पॉटरी की ट्रेनिंग लेते हैं। इसमें रहना और खाना भी शामिल है। स्टूडियो में, छात्रों को मिट्टी तैयार करना, मिट्टी को ट्रिम करना, उसमें से बोतलें आदि बनाना और यहां तक कि शीशा लगाना भी सिखाया जाता है।
यहां रुकने के लिए कितने पैसे करने होंगे खर्च?
नमिता, अगस्त 2021 से यहां छात्रा रही हैं। उनका कहना है कि स्लो पॉटरी और वेलंगा ऑर्चर्ड उनके लिए दूसरा घर हैं। वह कहती हैं, “एक महीना जो हमने वेलंगा में मिट्टी के बर्तन सीखने में बिताया, वह हमेशा हमारे दिलों में एक विशेष स्थान रखेगा। जब मैंने पहली बार मिट्टी को छुआ, तो मैंने सोचा भी नहीं था कि महीने के अंत तक इंटरमिडिएट लेवल तक पहुंच जाऊंगी! ”
वह कहती हैं कि निकिता और कार्तिक बहुत अच्छे मेज़बान हैं। नमिता का कहना है, “निकिता धैर्यवान हैं और कार्तिक सबसे अधिक देखभाल करने वाला, सच्चे और उदार व्यक्ति हैं। अगर मुझे कभी वापस जाने और इसे फिर से करने का मौका मिला, तो मैं इसे ज़रूर करूंगी! ”
हालांकि, जगह की कमी के कारण, कार्तिक कहते हैं कि उनके पास या तो मेहमानों के लिए होमस्टे खुला रहता है या फिर मिट्टी के बर्तन बनाना सीखने वाले छात्रों के लिए। वह कहते हैं, “यहां एक व्यक्ति के लिए, पांच दिन और चार रात के लिए 15,000 रुपए का पैकेज है, जिसमें खाना भी शामिल है।”
कार्तिक और निकिता के फार्मस्टे में हर महीने करीब 25 मेहमान आते हैं। यहां आने वाला हर मेहमान अपनी रोज़मर्रा की दिनचर्या से छुट्टी पाकर खुश होते हैं। निकिता का कहना है कि मेहमानों को ऑर्चर्ड पसंद है, क्योंकि यह उनके लिए आराम करने करने के लिए बेहतरीन जगह है।
मूल लेखः कृष्टल डिसूजा
संपादनः अर्चना दुबे
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